For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 74 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !

दिनांक 17 जून 2017 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 74 की समस्त प्रविष्टियाँ 
संकलित कर ली गयी हैं.


इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे -

सरसी छन्द और कुण्डलिया छन्द.


वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के अनुसार अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

************************************************

१. आदरणीय चौथमल जैन जी
"सरसी छंद "
धक -धक -धक -धक करे धोकनी , कोल बने अंगार।
तपता लोहा पीट -पीट कर , देता हूँ आकार||
चाहे हल की फाल बना दूँ , चाहे तो तलवार।
चाहे मैं औजार बना दूँ , चाहे फाल कटार ||
हल खेतों में अन्न उगाये , असी करे संहार।
कल पूर्जे तो मदद करते , खंजर करे प्रहार ||

द्वितीय प्रस्तुति
"कुण्डलियाँ छन्द "
लोहा तपकर आग में , हुआ लाल अँगार।
पीट -पीट आकार दे ,जीवन दिया गुजार ||
जीवन दिया गुजार , चित्त में चैन न पाया।
कड़ी मेहनत करी , पुत्र को बहुत पढ़ाया ||
कहे चौथमल जैन , गये सब छोड़ अकेला।
अभी भी यहाँ रहूँ ,आग में तपता लोहा ||
*****************
२. आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी
(१) कुण्डलियां
(१)
क़िस्मत सब की एक सी ,होती है कब यार
पटली पर बैठा हुआ ,सोच रहा लोहार
सोच रहा लोहार ,बुढ़ापा आया सर पर
महनत का है काम , करूँ मैं कैसे उठ कर
कहे यही तस्दीक़ ,हारना कभी न हिम्मत
करके ही तदबीर , बदल सकती है क़िस्मत
(२)
आहनगर से खुश नहीं ,है शायद तक़दीर
लगा यही है देख के ,मुझको यह तस्वीर
मुझको यह तस्वीर ,किस तरह बच्चे पाले
बना रहा औज़ार , आग में लोहा डाले
कहे यही तस्दीक़ ,बड़ा दुख दाई मंज़र
कितनी महनत देख ,करे बूढ़ा आहनगर 

(२) सरसी छन्द
---------------------
(१ ) हैं सफेद सब गेसू सर के ,बूढ़ा है लोहार
पेट के लिए करता महनत ,कब माने है हार
(२ ) शौक़ नहीं है कोई इसका ,यह है कारोबार
धन की खातिर बना रहा है ,आहनगर औज़ार
(३ ) छेनी भट्टी और हथौड़ा ,जब है तेरे पास
हिम्मत से कर महनत होगी ,पूरी तेरी आस
(४ ) लोहा ठंडा होने को है ,कहना मेरा मान
भट्टी में जब यह तपता है ,तभी बने सामान
(५ ) अगर बदलना ही है तुझको ,आहनगर तक़दीर
करनी होगी तुझको नादां ,महनत से तदबीर
(६ ) लिखा कहाँ है मज़दूरों की ,क़िस्मत में आराम
पेट के लिए करते रहते ,हैं यह दिन भर काम
(७ ) अता हौसला हिम्मत कर दे ,बूढ़े को भगवान
पाल रहा है अपने बच्चे , महनत कश इंसान
*************************
३. आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी
कुण्डलिया छ्न्द
तपना यदि स्वीकार है,तो जीना साकार
तप जाने पर ही मिले,लोहे को आकार....     (संशोधित)
लोहे को आकार,बने आभूषण सोना
सहे तपिश जो व्यक्ति,नहीं पड़ता है रोना
सतविन्दर कविराय,करे पूरा हर सपना
निश्चय से जो आज,चुनें जीवन में तपना 

 

जर्जर दोनों दिख रहे,लोहा और शरीर
लेकिन तपकर आग में,रहते दोनों धीर
रहते दोनों धीर,काम दुनिया के आते
मिलकर दोनों ख़ास,वस्तुएँ यहाँ बनाते
सतविन्दर कविराय,रहें हैं हिम्मत ये भर
कर सकते हो काम,भले दिखता तन जर्जर

सरसी छ्न्द(द्वितीय प्रस्तुति)
आलस यदि घर कर जाता है,गात न देता साथ
कर्म करें औ बढ़ते जाएँ,चलते पाँव व हाथ

नया हुआ या हुआ पुराना,लोहा है बेकार
बिना तपे औ बिना पिटे वह,लेता कब आकार

जले कोयला खुद हो काला,करता उजली आँच
इसी आँच से मिलती रोटी, बात यही है साँच

बने काष्ठ पटड़ी औ पीढ़ा, देती है आराम
नहीं बने आधार अगर ये,हो न लौह का काम

नहीं बुढ़ापा उसको आता,तन जाता हो सूख
काम उसे करना ही होता,जिसके घर में भूख
*************************
४. आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
कुंडलिया छंद
(१)
तपता जर्जर वृद्ध भी, जब तक चलती सास
तपता लोहे संग में, लिये आत्म विश्वास ||
लिये आत्म विश्वास, आंच में लोह तपाता
फिर साँचें में ढाल, वस्तुएं खूब बनाता |
वही सिखाता जाप, स्वयं जो पहले जपता,
वही तपायें लोह, स्वयम भी डरे न तपता |
(२)
श्रमिक पसीना तन बहें, तपता है तब लोह.
यत्न श्रमिक करता रहे, रहे न तन का मोह |
रहे न तन का मोह, चोट से कब घबराता
करता वह पुरुषार्थ, प्रगति में हाथ बँटाता
वस्तु लेती रूप, श्रमिक का फूलें सीना
हम रहते अनजान, बहाता श्रमिक पसीना |
*************************
५. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
सरसी छंद 

तेज धौंकनी चली हवा तो, हुआ कोयला लाल।

पेट के लिए बहे पसीना, यही रोज का हाल॥

 

चले हथौड़ा लाल लौह पर, लोहा बदले रूप।

अथक परिश्रम हर मौसम में, ठंडी बरखा धूप॥

करे अकेला कर्म लुहारी, रहे न कोई पास।

कठिनाई से चलता जीवन, फिर भी नहीं उदास॥

लोहे सा मजबूत इरादा, कठिन कहाँ फिर काम।

भागीरथ हनुमान भीष्म का, जग भी लेता नाम॥

 

सिर्फ भुजाओं के दम पर तो, हाल हुआ बेहाल।

फैला जाल मशीनों का तो, घटी आय हर साल॥

 

पूरा जीवन खपा दिया पर, वही लगन औ’ जोश।

कम है लाभ परिश्रम जादा, पर आत्मिक संतोष॥  

 

 

रहा कभी ना भाग्य भरोसे, उम्र पछत्तर पार।

खुद को तपा दिया योगी सा, किया स्वयं उद्धार॥

 (संशोधित)

*************************
६. आदरणीय अशोक कुमार रक्ताळे जी
सरसी छंद
धकधक करती चली धौंकनी, हुआ कोयला लाल |
ग्रीष्मकाल रमजान महीना , मन में उठे सवाल ||
मानव काया क्या न तपेगी , अगर जले अंगार |
कैसे सहन करेगा कोई , तन यह रोजादार ||

ईश प्रार्थना में भी बल है , कहती बूढ़ी देह |
स्वेद टपकता जिसके तन से, जैसे झरती मेह ||
किन्तु उसे कब प्यास सताती, सम्मुख हो जब कर्म |
स्वयं देवता सेवा करते, मन जो माने धर्म ||

अंगारों में लोहा डाले , बैठा है लोहार |
लाल करेगा फिर वह देगा, लोहे को आकार ||
अभी हथौड़ा नहीं चला है, नहीं हुई है चोट |
सही वक्त पर मार पड़ेगी, तब निकलेगी खोट ||

 

द्वितीय प्रस्तुति
कुण्डलिया 
बीती जाती उम्र ये, मगर न छूटा साथ |
खेल रहे हैं आग से , अब भी बूढ़े हाथ ||
अब भी बूढ़े हाथ , गर्म लोहे से लड़ते,
गढ़ते हैं औजार , कभी ये शिथिल न पड़ते,
श्वेत हुए हैं केश, उम्र पर कभी न जीती,
गई पीटते लौह , जवानी कब की बीती ||

रहिये चुप बस देखकर, तपता वृद्ध शरीर |
आग बुझाती भूख है , राख बताती पीर ||
राख बताती पीर , जवानी बीती जल-जल,
रही आग ही साथ, उम्रभर पलपल हरपल,
वृद्ध पीटता लौह , भाग्य ही इसको कहिये,
कहता फिरभी दृश्य, देखकर चुप ही रहिये ||
************************
७. आदरणीय सतीश मापतपुरी जी
सरसी छंद
भाथी यही बस थाती मेरी , और नहीं कुछ पास ।
जीवन रोटी दाल है मेरा , और नहीं कुछ खास ।
लोहा पीट के उमर गुजारी , पीट रहा अब माथ ।
मेरी पारो राम को प्यारी , छोड़ गए सुत साथ ।
अपनी खाल बचायी अब तक , मरी हुई यह खाल।
कल बीता पर कल क्या होगा , ईश्वर जाने हाल ।
भाथी साथ सुलगती छाती , दिल से निकलती हाय ।
लौह जलाते एक दिन क्यों नहीं , यह काया जल जाय ।
आज मशीनी युग का खेला , नहीं मिले रोजगार ।
कैसे जलायें पेट का चुल्हा , सोचे नहीं सरकार ।
*************************
८. आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी
सरसी छंद [गीत ]
अंगारों में लौह तपाता ,ये बूढ़ा लोहार
तन निर्बल,मन की क्या पूछें ,बड़ी पेट की मार

लोहारी औजार पड़े हैं, यहाँ वहाँ सब ओर
इसके हिस्से का उजियारा ,लायेगी कब भोर
नहीं गिला शिकवा है कोई, मौन उठाये भार
अंगारों में लौह तपाता, ये बूढा लोहार

पिसना,बस पिसते ही जाना, लिखा हुआ है माथ
नेता सब नारों में कहते, हम निर्धन के साथ
अच्छे दिन की बातें सारी, लगती हैं निस्सार
अंगारों में लौह तपाता, ये बूढा लोहार

तपना जीवन दर्शन इसका, भजे इसीका नाम
पर इसको श्रम के क्या पूरे , कभी मिले हैं दाम
नहीं किसी सपने की खट खट, सुनता मन के द्वार
अंगारों में लौह तपाता ,ये बूढा लोहार
*************************
९. आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
सरसी छंद
(1)
सँड़सी, भट्टी और हथौड़ा, हैं उसके औजार।
तपा रहा है लोहा पलपल, जिसका नाम लुहार।।
फरफर फरफर चलकर देती जब धौंकनी बयार।
भकभक भकभक भट्टी सुलगे, कोल बने अंगार।।
(2)
हल की फाल बनाए चाहे, खुरपी, छैनी, ढाल।
तपते लोहे पर देता है, सिर्फ हथौड़ा ताल।।
करते करते यही काम नित, हुए धवल सब बाल।
बदल न पाया लेकिन उसका, गुरबत वाला हाल।।
(3)
हँसिया खुरफी कुलहाड़ी भी, यही करे उत्पन्न।
जिनसे खेतों में उपजाता , हलधर अपना अन्न।।
लेकिन हलधर जैसा ये भी, अब तक वही विपन्न।      (संशोधित)
जबकि लुटेरों चोरों का भी, जीवन अधिक प्रसन्न।।
(4)
पटली उसका सिंहासन है, मेहनत उसका धर्म।
यही सोच कर करता रहता, वह पुस्तैनी कर्म।।
छोड़ गई जब अगली पीढ़ी, इसे मान कर शर्म।
उसकी पीड़ा का कोई भी, समझ न पाया मर्म।।
**********************
१०. आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी
कुण्डलियां छंद
हाथ हथौड़ा वह लिये, छड़ पर करते वार ।
दो पैसे की चाह है, जीने की दरकार ।
जीने की दरकार, काम सबको है करना ।
बाल युवा अरू वृद्ध, पेट सबको है भरना ।
चलना सबको राह, रहे सकरा या चौड़ा ।
गढ़ता वह औजार, हाथ पर लिये हथौड़ा ।।

 

द्वितीय प्रस्तुति
सरसी छंद
शांत उदर की ज्वाला करने, जला रहा वह आग ।
ध्यान मग्न वह अपने कारज, नहीं द्वेष अरू राग ।।

औजार गढ़े लौह गला कर, जिसका नाम लुहार ।
लौह संग निज रक्त जलाता, माने कभी न हार ।।

लौह सलाखे भठ्ठी डाले, छेड़ धौकिनी चाल ।
हाथ छिनी और हथौड़ा ले, गढ़ते हल के फाल ।।

गढ़ते हल के फाल कभी वह, गढ़ते कभी कुदाल ।
कृषकों के साथी बनकर वह, देते उनको ढाल ।।

परदादा से लिये धरोहर, करता है वह काम ।
बाल श्वेत आज हुये उनके, तब पाया है नाम ।।

चिंता उनको एक सतावे, होगा क्या अंजाम ।
गांवों में अब ग्रहण लगा है, शहरों में है काम ।।

तकनीक नई जब से आई, वेल्डर हुये लुहार ।
पुस्तैनी कारज मंद पड़े, झेल रहे सब मार ।।
*************************
११. अदरणीय अरुण कुमार निगम जी
कुण्डलिया
गलता लोहा आग में, या गलता लोहार
प्रश्न परस्पर पूछते, पास पड़े औजार
पास पड़े औजार, नहीं उत्तर हैं पाते
जीवन है संघर्ष, सोचकर चुप रह जाते
क्रियाशील है कर्म, भाग्य दोनों को छलता
इत गलता लोहार, और उत लोहा गलता ।
************************

Views: 2219

Replies to This Discussion

श्रद्धेय सौरभ सर सादर वन्दे! छंदोत्सव अंक-74 के सफल संचालन के लिए हार्दिक बधाई एवं संकलन प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक आभार!
सर पहली कुण्डलिया में हरी पंक्ति में //मिलें// शब्द गलत टँकित हुआ है। कृपया इसे //मिले// से विस्थापित कर कृतार्थ करें!

जी आदरणीय. आपने सही समझा. निवेदन के अनुसार पंक्ति शुद्ध कर दी गयी है. 

सधन्यवाद

सादर हार्दिक आभार सरजी!

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम,  ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 74 के सफल संचालन और चिन्हित संकलन की प्रस्तुति पर बहुत-बहुत बधाई. सादर.

आदरणीय अशोक भाईजी, आयोजन में आपकी संलग्नता और निरंतरता हमारे लिए ऊर्जस्वी बने रहने का महती कारण है. पिछले १५ दिनों से छत्तीसगढ़ के दौरे पर था. आयोजन के अंतिम दिन कोर्बा से लौटते इतना विलम्ब हुआ कि किसी तरह आयोजन को समयानुसार बंद कर पाया. इस क्रम में कई प्रतिभागियों की रचनाओं पर टिप्पणी देने से भी रह गया. संकलन में हुआ विलम्ब भी इसी कारण है. आपका सहयोग बना रहे. 

शुभ-शुभ

मुहतरम जनाब सौरभ साहिब,ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव अंक 74 के त्वरित संकलन तथा कामयाब संचालन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें

जनाब तस्दीक भाई जी, आपने छंद के मर्म को सुगढ़् तरीके से समझा है यह आपकी रचनाधर्मिता के विस्तृत आयाम का परिचायक भी है. अब आप कथ्य को लेकर सचेत हों. क्यों कि शिल्प के तौर पर आपकी रचनाएँ सशकत होने लगी हैं. 

आपकी प्रतिभागिता और सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद. 

आदरणीय सौरभ भाईजी

लगातार सफर और व्यस्तता के बाद भी  आयोजन में आप साथ रहे ,टिप्पणी और सार्थक सुझाव के साथ इसके लिए हृदय से आभार। 

कुल सात पद में चार गलतियाँ चिंतन का विषय है। संशोधित पूरी रचना को संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें।

सादर

 

तेज धौंकनी चली हवा तो, हुआ कोयला लाल।

पेट के लिए बहे पसीना, यही रोज का हाल॥

 

चले हथौड़ा लाल लौह पर, लोहा बदले रूप।

अथक परिश्रम हर मौसम में, ठंडी बरखा धूप॥

करे अकेला कर्म लुहारी, रहे न कोई पास।

कठिनाई से चलता जीवन, फिर भी नहीं उदास॥

लोहे सा मजबूत इरादा, कठिन कहाँ फिर काम।

भागीरथ हनुमान भीष्म का, जग भी लेता नाम॥

 

सिर्फ भुजाओं के दम पर तो, हाल हुआ बेहाल।

फैला जाल मशीनों का तो, घटी आय हर साल॥

 

पूरा जीवन खपा दिया पर, वही लगन औ’ जोश।

कम है लाभ परिश्रम जादा, पर आत्मिक संतोष॥  

 

 

रहा कभी ना भाग्य भरोसे, उम्र पछत्तर पार।

खुद को तपा दिया योगी सा, किया स्वयं उद्धार॥

 

..............................................................................

संशोधित यथा निवेदित .. 

सादर

आदरणीय भाई सौरभ जी सादर अभिवादन । चिंहित अशुद्ध पंक्तियों में कृषक शब्द से मात्राएं अशुद्ध हो रही हैं । अतः आपसे निवेदन है कि कृषक शब्द को हलधर से प्रतिस्थापित कर कृतार्थ करें!

संशोधित यथा निवेदित 

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service