आदरणीय साथिओ,
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आआ० आपका शुक्रगुजार हूँ .
एक मेटाफॉर होने के नाते भंवर के अर्थ तो विशाल एवं बहुआयामी हैं, मगर आपने तो इसे गटर तक ही महदूद कर दिया आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जीI बहरहाल पूरी स्थति का चित्र बढ़िया किया है, जिस हेतु बधाई प्रेषित हैI लेकिन कुछ चीज़ें अखर रही हैं:
1. //इस जलभराव में टेम्पो का चलना बंद हो चुका था.// यह पंक्ति अनावश्यक हैI
2. // उसने फिर एक तान भरी और मोबाइल से उस भंवर की फोटो खींचने लगा // "फिर एक तान भरी" पहली तान कब बहती थी?
3. लड़का यदि पानी के बहाव के कारण किनारे की तरफ बढ़ गया था तो उसे वहां लगा साइन बोर्ड क्यों दिखाई नहीं दिया?
4. वैसे तो स्कूल वाले बच्चों को मोबाइल लेकर आने की इजाजत ही नहीI चलो मान भी ले कि उसके पास मोबाइल था, तो तो ज़ाहिर है कि जेब में मोबाइल रखने वाला और अकेले घर वापिस जाने वाला बच्चा नन्हा मुन्ना तो होगा नहींI तो एकदम से उसके गटर में समा जाने वाली बात अजीब लगती हैI
आआ० अनुज मैं मानता हूँ कि कहानी की प्रस्तुति उतनी अच्छी नहीं है मैं और बेहतर कर सकता था पर यह सत्य घटना है , भँवर को मेटाफेर के रूप में मैंने लघु कथा में प्रयोग किया भी है पर इस मंच पर वः नहीं आ पायी . आगे-
1. //इस जलभराव में टेम्पो का चलना बंद हो चुका था.// यह पंक्ति अनावश्यक हैI --- आआ० अनावश्यक नहीं है टेम्पो चलता तो लड़का पैदल घर क्यों जाता .
// उसने फिर एक तान भरी और मोबाइल से उस भंवर की फोटो खींचने लगा // "फिर एक तान भरी" पहली तान कब बहती थी?आआ० पहली तान से ही कथा आरम्भ हुयी है
लड़का यदि पानी के बहाव के कारण किनारे की तरफ बढ़ गया था तो उसे वहां लगा साइन बोर्ड क्यों दिखाई नहीं दिय आआ० जिसका सारा संघर्ष पानी पर चलने या भँवर की और हो उसे साइनबोर्ड नहीं भी दिख सकता
वैसे तो स्कूल वाले बच्चों को मोबाइल लेकर आने की इजाजत ही नहीI चलो मान भी ले कि उसके पास मोबाइल था, तो तो ज़ाहिर है कि जेब में मोबाइल रखने वाला और अकेले घर वापिस जाने वाला बच्चा नन्हा मुन्ना तो होगा नहींI तो एकदम से उसके गटर में समा जाने वाली बात अजीब लगती हैI --- आआ० मनाही तो बहुत है पर आज कल दो दो वर्ष के बच्चे भी कार्टून खुद देख लेते है मेरे अपना पोता और नातिन मेरी कल्पना आठ दस साल के बच्चे की है दुर्घटना घटनी होती है तो बड़े बड़े चूक जाते है , वह तो फिर भी बच्चा था
अंत में कहानी हर हाल में कहानी होती है . . आआ० आप कथा में गहराई तक उतरे यही मेरे लिए आपका आशीर्वाद है . सादर
सेल्फी का क्रेज़ युवा ही नहीं, बूढ़े बच्चों सब के सर चढ़ कर बोल रहा है ...बधाई सामयिक रचना पर आदरणीय
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी।भँवर का यथार्थ चित्रण, वह भी इतनी मारक एवम कटाक्ष पूर्ण शैली में।बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आदरणीय प्रोत्साहन के लिए आभार .
आभार आदरणीया
बहुत बहुत शुक्रिया
आआ० आपका कथन स्वागत योग्य है पर कमर तक पानी हर जगह नहीं होता . दुर्घटना सड़क के किनारे की और हुयी उधर पानी प्रायशः कमर तक नहीं होता
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