आदरणीय साथिओ,
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आपकी कहन कथा का रूप नहीं ले पायी आदरणीया. . यह कमेंट्री की ही तरह है .कथा की तरह नहीं .
कुछ अधुरा अधुरा लगा.
आ. अर्पणा जी, आपकी यह रचना मुझे हाल ही में घटी घटना पर टिप्पणी मात्र लगी. आपने शीर्षक अलगाववाद लिया है पर आपकी कहानी इससे न्याय नहीं कर रही है. यदि यह करती तो अवश्य ही प्रदत्त विषय का निर्वहन हुआ होता. मुझे लगता है कि आपको इस पर अभी और मेहनत करने की आवश्यकता है. आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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