आदरणीय साथिओ,
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भँवर - लघुकथा –
"शकूर मियाँ, रोज़ रोज़ थाने के चक्कर लगाने से कुछ हांसिल नहीं होगा। अपने आप को हालात के मुताबिक़ बदलो"।
"हुज़ूर आप ही बताइये अब इस उम्र में मुझे क्या बदलाव की ज़रूरत है"।
"यह बात तो आप उन लोगों से पूछो, जिनके खिलाफ़ आप शिकायतें लेकर आते हो"।
"माई बाप, जब से नयी सरकार बनी है, ज़ीना हराम कर रखा है। पूरे गाँव में हमारी क़ौम के केवल तीन घर हैं। सभी मज़दूर किस्म के लोग हैं। गाँव में कोई काम नहीं देता। इसलिये जवान लड़के शहर चले जाते हैं। घरों में बड़े बूढ़ेलोग, स्त्रियाँ और बच्चे होते हैं। हर तीसरे चौथे दिन लोग झुंड बनाके घरों में घुस आते हैं, तलाशी लेने। कभी गाय के गोश्त का इल्ज़ाम, कभी चोरी चकारी का आरोप, कभी कुछ और। असल मक़सद होता है घर की बहू बेटियों को घूरना, फ़ब्ती कसना , छेड़ना और परेशान करना"।
"शक़ूर मियाँ, हो सकता है आपकी बात सच हो, मगर क्या आप यह साबित कर पाओगे। कोई गवाह ला सकते हो जो आपकी क़ौम का ना हो"।
“ हुज़ूर ऐसा तो कोई कानून हमने नहीं सुना”|
"शक़ूर मियाँ, आजकल रोज़ नये क़ानून बन रहे हैं। मुक़द्दमा दर्ज़ कराना है तो जैसा हम कहें वैसा गवाह लेकर आओ"।
"हुज़ूर यह तो नामुमक़िन सी बात है"।
"शक़ूर मियाँ फिर तो हमारे भी हाथ बंधे हुए हैं"।
"हुज़ूर तो क्या हम लोग ऐसे ही बेइज़्ज़त होते रहें। रात बिरात को तो बच्चियों का घर से निकलना भी दुश्वार हो गया है"।
"आप एक काम क्यों नहीं करते। यहाँ का घर द्वार बेच कर कहीं बाहर निकल जाओ"।
"यह भी सोचा था मगर यहाँ के लोग कौड़ियों के दाम में खरीदना चाहते हैं और बाहरी आदमी को खरीदने नहीं देते"।
"शकूर मियाँ, ज़ान है तो ज़हाँन है। जो मिलता है लेलो और निकल जाओ इस झंझट से | आप कहें तो मैं बात करूं। एक दो ग्राहक मेरी नज़र में भी हैं"।
"आपकी बात तो ठीक है हुज़ूर, मगर नयी जगह पर भी ऐसे ही लोग और आप जैसे अफ़सर हुए तो"?
मौलिक एवम अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी ।
वाह !आदरणीय तेज वीर जी बहुत उम्दा बात कही.-"आपकी बात तो ठीक है हुज़ूर, मगर नयी जगह पर भी ऐसे ही लोग और आप जैसे अफ़सर हुए तो"?. शानदार बधाई आप को.
हार्दिक आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी।
भई वाह, आदरणीय पञ्च लाइन ने तो महफिल लूट ली . बहुत बढ़िया.
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।
हार्दिक आभार आदरणीय कल्पना भट्ट जी।
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