आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आ राजेश कुमारी जी इस उत्साहवर्धन के लिए
यही राजनीति होरही है सब दूर. बधाई आप को उम्दा चित्रण के लिए. आदरणीय विनय कुमार जी बधाई .
बहुत बहुत आभार आ ओमप्रकाश क्षत्रिय जी इस उत्साहवर्धन के लिए
बहुत बहुत आभार आ कल्पना भट्ट जी इस उत्साहवर्धन के लिए
सियासी लाभ प्राप्त करने के लिए लोग तरह-तरह के मुखौटे पहनते हैं. ऐसे ही एक मुखौटे को उतारती हुई इस बढ़िया लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. विनय जी. सादर.
बहुत बहुत आभार आ महेंद्र कुमार जी
सियासती दाँव पेंच , ये लोग कुछ भी स्वांग कर सकते हैं बहुत बधाई आपको इस सार्थक रचना पर आदरणीय विनय कुमार जी
बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पण्डे जी
आदरणीय विनय कुमार जी बढ़िया प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
प्रदत्त विषय से न्याय करती इस प्रभावशाली व कसावट भरपूर लघुकथा का शीर्षक चयन व शिल्प श्लाघनीय है। सादर शुभकामनाएं
देवकीनन्दन
‘‘ मैं ने सदा ही आप लोगों की ही इच्छाओं के अनुकूल काम किया, आज जब मैं अपनी पसन्द की लड़की से विवाह करने की अनुमति चाहता हॅूं तो आपको क्यों आपत्ति है?‘‘
‘‘ इसलिए कि वह लड़की अपनी जाति की नहीं है, खानदान का भी तो ध्यान रखना होता है कि नहीं ?‘‘
‘‘ वह पांच साल तक मेरे साथ कालेज में पढ़ी है, हम एक दूसरे की रुचियों को अच्छी तरह समझते हैं और स्वभाव से पसंद करते हैं, तो क्या यह व्यर्थ है?‘‘
‘‘ अनेक लोगों की रुचियाॅं समान होती हैं, अनेक वर्षों से जान पहचान भी होती है तो क्या सभी से विवाह किया जा सकता है? क्या यह आजकल की चिथड़े जैसे कपड़ों वाली फैशन है ? ‘‘
‘‘ परन्तु यह कहाॅं तक उचित है कि आपने जिस परिवार की लड़की को पसंद किया है उसे एक घंटे में ही पसंद कर मैं अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय कर लॅूं?‘‘
‘‘ क्यों नहीं? हम तो उनके परिवार और खानदान को जन्म से जानते हैं, हमारे पुराने संबंध उस कुल से जुड़े हैं ।‘‘ पिता मूछों पर ताव देते बोले।
‘‘ आप बार बार कुल, खानदान के भंवरजाल में क्यों उलझा रहे हैं? सभी मनुष्य बंदरों के वंशज हैं यह प्रमाणित है ?..? .. माॅं ! मैं इसे नहीं मानता।‘‘
‘‘ अच्छा बेटा! जब तू अपने विचारों पर इतना दृढ़ है तो मेरी एक बात मान ले, योग्य ज्योतिषी से कुंडली का मिलान कराके देख ले यदि उत्तम मिलान होता होगा तो हम सहमत हो जाएंगे ‘‘ माॅं ने आंसू पोंछते हुए कहा।
‘‘ फिर दूसरा चक्कर? हम ज्योतिष को नहीं मानते, यह सब मूर्ख बनाने के धंधे हैं।‘‘
‘‘ अरे मूर्ख! यह तो सोच, जो लोग तेरी तारीफ खानदानी और संस्कारी पुत्र के रूप में करते नहीं थकते और उदाहरण देकर समाज में कहते हैं कि पुत्र हो तो देवकीनन्दन के पुत्र जैसा, वे क्या कहेंगे?‘‘ पिता क्रोध में आकर बोले।
‘‘ दूसरे क्या कहेंगे इसकी हम क्यों चिन्ता करें?‘‘
‘‘ हमारी सभ्यता और संस्कृति ?‘‘
‘‘ ये भी समय समय पर बदलती रही हैं, आप सबने अपने जमाने की संस्कृति और फैशन को अपनाया तो हमें अपने जमाने की फैशन और संस्कृति को अपनानें पर आपत्ति क्यों ??‘‘
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