आदरणीय साथिओ,
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यह आपकी पारखी नजर का कमाल है भाई विनय कुमार सिंह जी, वर्ना बन्दा किस लायक है. आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा का ह्रदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ.
परिवार का स्थान हमारे समाज में बेहद महत्वपूर्ण है, यह भी सत्य है कि स्त्री के बगैर इसकी अवधारणा बेमानी हो जाती है. मेरी यह रचना उसी अन्नपूर्णा को समर्पित है जिसे परिवार के इलावा और कुछ नहीं दिखता. आपको रचना पसंद आई, यह जानकार मन को अति संतोष हुआ, हार्दिक आभार भाई वीर मेहता जी.
हार्दिक आभार आ० मोहम्मद आरिफ जी. वर्तनी की त्रुटियाँ सुधारने का संकलन आने पर प्रयास अवश्य करूंगा मास्टर जी.
बहुत बहुत शुक्रिया आ० ओमप्रकाश भाई जी.
उस पंक्ति का महत्त्व एक अन्नपूर्णा ही समझ सकती है, हार्दिक आभार आ० वसुधा गाडगिल जी.
दिल से शुक्रिया आ० मोहन बेगोवाल जी.
प्रस्तुत लघुकथा की विशिष्टता है उसका सादापन, सहजता और प्रवाह । जिस सादगी व सहजता से एक स्त्री के कर्त्तव्य निर्वाहन को चित्रित किया है वह प्रशंसनीय है । लघुकथा का शीर्षक इस आयोजन का 'द बेस्ट' शीर्षक चयन है । लघुकथा का अंत 'तब तू यह सब नहीं समझ पाएगी' सब कुछ कितनी आसानी से समझा रहा है । वाह ! ।वर्तनी अशुद्धियां पूरे चांद को ग्रहण सा लगा रही हैं । सादर
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