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मिरा दिल ये कैसे ....संतोष

मिरा दिल ये कैसे बदल गया,
फिर तिरी यादों से बहल गया ।

मैंने देखी जो फिर तस्वीर तिरी,
मिरा दिल फिर से मचल गया ।

लोग ज़ालिम हैं सब कुछ जाने है,
क़िस्सा फिर दुनियाँ में उछल गया ।

तिरी यादों में खोया मैं इस क़दर,
सुबह का सूरज शाम में ढल गया ।

दास्ताँ मिरी जो इक बुत को सुनाई,
वो पत्थर भी मोम सा पिघल गया ।
#संतोष
{मौलिक एवं अप्रकाशित}

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Comment by santosh khirwadkar on September 12, 2017 at 4:47pm
चरण स्पर्श आदरणीय समर साहब ,सर्वप्रथम तहेदिल से इन शब्दों को ख़ूबसूरत ग़ज़ल का रूप देने के लिये हृदय से धन्यवाद/आभार!आप का आशीर्वाद स्वरूप ये मार्गदर्शन सतत् अपेक्षित!
Comment by Samar kabeer on September 12, 2017 at 3:23pm
दिल ये कैसे बदल गया
यादों से ही बहल गया

देखी जो तस्वीर तेरी
मेरा दिल फिर मचल गया

ज़ालिम हैं सब लोग यहाँ
दिल ये सुनकर दहल गया

डूबा था मैं यादों में
दिन तेज़ी से निकल गया

मेरा क़िस्सा सुनते ही
पत्थर का बुत पिघल गया
---
ये आपकी ग़ज़ल तैयार हो गई, अरकान हैं 'फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा'
Comment by santosh khirwadkar on September 10, 2017 at 6:34pm
प्रणाम/सलाम आदरणीय समर साहब ! मेरे इस प्रयास पर आप की प्रतिक्रिया से शायद लिखने की हिम्मत बंधी रहती है !
पुनः इंतज़ार...........
Comment by santosh khirwadkar on September 10, 2017 at 6:31pm
शुक्रिया आदरणीय आरिफ़ साहब ! क्षमा चाहूँगा वास्तव में अर्कान त्रुटिवश लिखना भुला नहीं ,मुझे इस पर अध्ययन की सख़्त आवश्यकता है !अभी अर्कान मुझे समझ नहीं आया ,किंतु भविष्य में जल्द ही इसे सीखने का प्रयत्न करूँगा!
आभार!
Comment by Samar kabeer on September 10, 2017 at 6:23pm
जनाब संतोष जी आदाब,प्रयास अच्छा है,पुनः वापस आता हूँ ।
Comment by Mohammed Arif on September 10, 2017 at 4:37pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब, बह्रे मीर में बहुत अच्छे अश'आर उकेरे हैं आपने । हर शे'र लाजवाब । दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by Mohammed Arif on September 10, 2017 at 4:33pm
आदरणीय संतोष खिरड़वरकर जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । आपने ग़ज़ल के अर्कान नहीं लिखे हैं । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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