आदरणीय साथिओ,
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" ठीक कह रहे हो बेटा , अभावो के अंधेरे में स्नेह का उजाला होगा मैं यह तो भूल ही गयी थी।"- आदरणीय अर्चना त्रिपाठी जी बहुत लाजवाब सन्देश देती सुंदर लघुकथा . बधाई आप को .
लघुकथा के भाव अच्छे हैं और यह प्रदत्त विषय को परिभाषित भी कर रही है जिस हेतु बधाई प्रेषित है. लेकिन अभी इस रचना में कथ्य और शिल्प की दृष्टि से सम्पादन की काफी गुंजाइश है. अम्मा का टीवी पर आना और पुलिस स्टेशन में मिलना बहुत अटपटा सा लग रहा है. निम्नलिखित वाक्य देखें:
//" तुम्हारे भैया क्या निपटते ,वो खुद ही कह रहा था अभी पहुँचा दिया तो जगहँसाई होगी।और मुझे समझा रहा था आप रमन के यहां चली जाओ ,यहां कौन आपकी सेवा करेगा।हम दोनों ही व्यस्त रहते हैं।जब मैं टस से मस नही हुई तब दोनो लड़ने लगे। "//
"तुम्हारे भैया क्या निपटते"
"वो खुद ही कह रहा था"
"निपटते" के साथ "था" की जुगलबंदी भाषाई दृष्टिकोण से अजीब नहीं लगती?
हार्दिक बधाई आदरणीय अर्चना जी। बेहतरीन और संदेशप्रद लघुकथा।
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