आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही उम्दा लघुकथा कही है जानकी वाही जी, वाह! पूरा दृश्य आँखों के सामने जीवंत हो उठा. रचना में निहित सन्देश भी क्रांतिकारी है जिस हेतु आपको हार्दिक बधाई. लेकिन मुझे लगता है कि शेफाली को लिखे गए पत्र का ज़िक्र यहाँ अनावश्यक है, खासकर उसमे लिखी गई कविता से रचना बोझिल हो रही है. इस बात का ज़िक्र कर देना ही मेरे हिसाब से काफी था. कृपया इस तरफ ध्यान अवश्य दें.
(इस बार भी आपकी रचना में लगभग हर पंक्ति के बाद गैप है, जिसे आपने पिछली बारे सुधारने का प्रोमिस किया था).
आदरणीय जानकी वाही, सबसे पहले लघुकथा के शीर्षक की बात करूंगा । शीर्षक से मुझे दुष्यंत कुमार की ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो याद आ गई इसकी निम्नलिखित पंक्तियां
कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
आपकी लघुकथा के शीर्षक को परिभाषित करने के लिए ही लिखीं गईं है शायद । 'जूगनू' की थोड़ी सी रौशनी बेशक अंधेरा खत्म नहीं कर सकती पर एक शुरूआत तो कर ही सकती है अंधेरे के खिलाफ लड़ाई की । यह शीर्षक चयन इस आयोजन अब तक की लघुकथाओं में से सर्वश्रेष्ठ शीर्षक चयन है। इस हेतु आपको दस में से दस नंबर । केवल इसका शीर्षक ही प्रदत्त विषय से पूर्णरूपेण न्याय करने में सक्षम है। एक नज़र में लघुकथा आकारगत सीमा का अतिक्रमण करती नज़र आती है परन्तु लघुकथा पठन के दौरान बिल्कुल ऐसा महसूस नहीं होता। लघुकथा कल-कल बहती सरिता जैसे पाठक को अपने प्रवाह में बहा ले जाती है और पाठक आनंद से बहता जाता है। हां कविता का अंश कुछ बोझिल सा महसूस अवश्य हो रहा है । लघुकथा का दृश्य-चित्रण तो लाजवाब है। सब कुछ आंखों के सामने घटित होता महसूस हो रहा है। लघुकथा पढ़ कर मन तृप्त हो गया। सादर शुभकामनाएं ।
मुबारक,मुबारक, मुबारक ... वाह गजब की कथा कही आपने जानकी जी ! बधाई हो
आ. जानकी वाही जी, प्रदत्त विषय से न्याय करती इस उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. " पर मैं महसूस करता हूँ औरत की भावनाओं और त्याग को ।"
2. //अब उसकी आवाज़ में परिहास छलक रहा था।// "छलक" या "झलक"?
3. कविता का प्रयोग मुझे भी अनावश्यक लगा. यदि करना ही था तो इसे और बेहतर तरीके से करना चाहिए था. साथ ही, //प्रिय , शेफाली (मुखर्जी )// यहाँ कोष्ठक में सर नेम का प्रयोग भी अस्वाभाविक है. कोई पत्नी को लिखते समय उसमें सर नेम क्यों लगाएगा? नीचे "ओहाना मुखर्जी" लिखा होना ही पर्याप्त था.
4. शीर्षक उत्कृष्ट है और विषय से सुसंगत भी.
आपकी लेखन शैली बहुत उम्दा है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी वाही जी।बेहतरीन लघुकथा।
एक बार आपकी रचना कविता के बिना पढ़ी और दूसरी बार कविता के साथ, मेरी भी पाठकीय प्रतिक्रिया यही है कि कविता के अंश रचना का प्रवाह रोक रहे हैं| हालाँकि दो बार आपकी रचना पढने का कारण यह था कि प्रारंभ का कुछ वार्तालाप लघुकथा का हिस्सा हो न हो उससे सन्देश पर तो फर्क नहीं पड़ता लेकिन एक अनुपम साहित्यिक कृति की तरह का सृजन है, जो बार-बार पढने को स्वतः ही प्रेरित करता है| सादर बधाई स्वीकार करें इस बहुत अच्छे सृजन हेतु|
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