For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पेइंग-गेस्ट और ब्लैकमेलर (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"चाय बनाने को लेकर कलह करते हैं।"
"अच्छा! तो तू चाय मत बनाया कर! उसे ही बनाने दिया कर!"
"झाड़ू-पौंछा और घर संवारने की कह-कहकर कलह करते हैं।"
"अच्छा! तू सब कुछ वैसा ही पड़े रहने दिया कर, तू कोई नौकरानी थोड़ी न है, अपनी सरकारी नौकरी के अलावा तू कुछ मत किया कर। अपने आप को संवारो और बच्चों को संभालो!"
"कहते हैं कि बीवी हो, यह सब भी करना ही होगा!"
"अरे! ऐसे शौहर के होते बीवी तो नहीं, बेवा बनना बेहतर है!"
"विधवा जैसी ही तो जी रही हूं, अम्मी!" अपने-अपने काम, अपने-अपने ख़र्चे, बस!"
"और बच्चे! उनका क्या ...?"
"वे समझदार हो गये हैं, हमारे बीच ब्लैकमेलर हो गये हैं!"
"अच्छा! तो फिर काट लें ज़िन्दगी उसी शौहर के साथ, कट ही जायेगी, लाखों जोड़ों की तरह! ख़ुद को पेइंग-गेस्ट समझ ले या शौहर को!"

फिर मायके का फोन कट गया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 4:22pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन व समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता कसार जी और आदरणीय सुरेन्द्र इंसान जी।
Comment by surender insan on October 8, 2017 at 8:47am
उफ उफ उफ!!! बहुत बेहतरीन रचना की आपने बस इतना ही कहूँगा जी। बहुत बहुत बधाई हो जी।
Comment by Nita Kasar on October 6, 2017 at 6:49pm
बेटी को पीहर से जैसे संस्कार मिलते है वे उसी आधार पर उसकी दुनिया बनाने में बड़ी भूमिका निभाते है।महिला परिवार की धुरी होती है।ऊपर से पत्नि का ये कहना एेसे शौहर के होते बीवी नही वेबा होना बेहतर उसकी पीड़ा दर्शाता है ।कितने विपरीत हालात है उस पत्नि के सामने कि बच्चे ब्लैकमेलर बन गये ।खूब ख़ाका खींचा है पीड़ित पत्नि के मन का बधाई आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 4, 2017 at 10:16pm
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब डॉ. विजय शंकर जी। आपकी समीक्षात्मक और ज्ञानवर्धक टिप्पणियों हमेशा हमें मार्गदर्शित करती हैं। मेरी इस लघुकथा की सार्थकता और स्तर का अनुमोदन करते हुए मुझे मार्गदर्शित एवं प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया। पूरी कोशिश करूंगा कि आगे भी आप सुधी पाठकों की अपेक्षा अनुरूप सार्थक लेखन कर सकूं। एक बार पुनः हार्दिक आभार।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2017 at 6:33pm
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी , बात वाकई में दिन प्रति दिन सामने आने वाली सच्चाई है पर आपने जिस पक्ष को लेकर इसे कथा का रूप दिया वह सराहनीय है , उसी से आपकी यह कथा अत्यंत उच्च स्तर की प्रस्तुति हो गई। इसकी विषयवस्तु पर आते हैं - आधुनिक कहे जाने वाले परिवेश की दें जो एक अनिवार्यता बंटी जा रही है। समझ का फेर है। पैसा कमाना ही जीवन का सार हो होता जा रहा है या योन कहें कि एक छोटा सा भी न्यूक्लियर परिवार चलाने के लिए दोनों का नौकरी करना बुनयादी अनिवार्यता बनती जा रही है। यह समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र दोनों विषयों को चुनौती देता विषय है। वैसे तमाम देशों में यह ऐसी प्रबल अनिवार्यता नहीं है कि इसके बिना एक संपन्न जीवन जिया ही न जा सके। यह भी विचारणीय है कि परिवार के लिए जो त्याग किया जाता है वह परिवार से कितना कुछ छीन लेता है। यहीं पर सोचना पड़ता है कि सम्पन्नता जरूरी होते हुए भी सुख का पर्याय नहीं है। अतः दोनों में से एक को चुनने के पूर्व खूब सोच विचार करना चाहिए।
सम्प्रति तो आपको इस वैचारिक कथा के लिए अनेकानेक बधाईयां। सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 4, 2017 at 3:50pm
ऐसा तो सोचा न था। इतनी हौसला अफज़ाई और अनुमोदन लायक इस बार लिख सका, तो आप सभी की टिप्पणियों से प्राप्त सतत् मार्गदर्शन और प्रोत्साहन से ही। रचना पर त्वरित टिप्पणियों के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेज वीर सिंह साहब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब, जनाब समर कबीर साहब और मुहतर्मा प्रतिभा पाण्डेय साहिबा। इसी तरह आशीर्वाद और दुआओं के साथ रचनाओं पर समय देकर टिप्पणी कर मार्गदर्शन प्रदान करते रहिएगा। यही तो इस अद्वितीय साहित्यिक मंच की विशेषता/कार्यशाला है।
Comment by pratibha pande on October 4, 2017 at 3:41pm
वाह वाह और बस वाह, एकदम कसी हुई शानदार कथा। हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी।
Comment by Samar kabeer on October 4, 2017 at 3:27pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा और मुख़्तसर लघुकथा लिखी,मुझे बहुत पसंद आई,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on October 4, 2017 at 2:11pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, सशक्त लघुकथा, बेहतरीन कथानक । संवाद भी पात्रानुकूल है । इस शानदार प्रस्तुति पर ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on October 4, 2017 at 9:22am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बहुत गहरी और गंभीर बात कहती हुई लाज़वाब लघुकथा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
21 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service