For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने-पराये(लघुकथा)राहिला

"तुम्हारी सारे फैसलों से मैं हमेशा सहमत रहा हूँ । लेकिन आज इस फैसले से मैं कतई सहमत नहीं।आख़िर मेरी गैरहाजिरी में ऐसा क्या हुआ कि अचानक तुमने वहां वापसी की ज़िद पकड़ ली?बड़ी भाभी या सुषमा ,किसी ने कुछ कहा क्या?"

"...."

" कुछ तो बोल बिट्टो! क्या तू भूल गयी उन लोगों ने तेरे साथ कितना गलत किया था?"
" नहीं ..,कुछ नहीं भूली, लेकिन ये भी याद है कि इन सब के बाद वह अपने व्यवहार पर शर्मिंदा भी हुए थे!"उसने सपाट भाव से उत्तर दिया।
"तू !पागल हो गयी है? कुत्ते की पूंछ कभी सीधी हुई है जो तू उसके बहकावे में आ गयी।तुझे हमने राजकुमारियों की तरह पाला है।और कोई तुझ पर जुल्म करे ,ये हमें कतई बर्दाश्त नहीं ।
भाई के मन में अपने लिए प्यार और फिक्र देखकर कर उसकी आंख भर आयी।कुछ देर की गहरी चुप्पी के बाद खुद को संयत करते हुए वह बोली-
"भाई एक कहानी सुनाऊँ।"
"...?"ऐसी बेवक़्त की बात सुन सुबोध चौंक उठा। लेकिन इतना जरूर समझ गया कि बात साधारण नहीं है। उसने कार में चल रहे एफएम को बंद कर दिया।
शीशे से बाहर देखते हुए उसने शुरू किया।
"परोपकार और अहिंसा का प्रचार -प्रसार कर रहे एक महात्मा को वहाँ की असहमत जनता ने क्रुद्ध होकर बंधक बना लिया ।और समाज़ के कुछ ग़द्दावर ठेकेदारों ने उन्हें संगसार करने की सजा सुना दी ।उन महात्मा के साथ उनका एक शिष्य भी था ,लेकिन भाग्य से वह उस समय साथ ना होने के वह कारण बच गया। थोड़ी देर बाद जब वह लौटा तो उसने अपने गुरु को पेड़ से बंधा पाया ।लोगों के हाथ में पत्थर थे ।एक जल्लाद किस्म के आदमी ने उपस्थित सभी लोगों को पत्थर मारने का आदेश दिया।नरमी दिखाने वाले को भी सख्त सज़ा थी ।ऐसे में शिष्य बड़े असामंजस्य में पड़ गया कि कैसे अपने गुरु को पत्थर मारने का पाप अपने सिर ले। यदि ऐसा नहीं करता तो खुद लिए मुसीबत खड़ी थी।आदेशानुसार लोगों ने पत्थर मारने शुरू कर दिये ,लेकिन आश्चर्य!इतनी चोटों के बाबजूद महात्मा के चेहरे पर शिकन तक नहीं पड़ी। यहाँ शिष्य ने भीड़ का फायदा उठाया,और अपने गुरु से नजरें चुराते हुए ,पत्थर की जगह एक फूल फेंक कर मारा ।महात्मा की नज़र अपने शिष्य पर ही थी ।फूल की मार पड़ते ही महात्मा फूट-फूट कर रो पड़े।
पता है भैया!ये कहानी बचपन में सुनी थी।
तब मुझे यह समझ नहीं आया कि महात्मा फूल की मार से क्यों रो दिए थे ,जबकि पत्थरों की चोट पर उन्होंने उफ तक नहीं की थी।आज उस कहानी का मर्म समझ पायी हूँ ।" कार रुकी और नम आँखों से विभा
ससुराल की ड्योढ़ी पर उतर गई।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 726

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on October 15, 2017 at 8:25pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील सर जी! सादर
Comment by Rahila on October 15, 2017 at 8:24pm
बहुत शुक्रिया प्रिय कल्पना दी!प्रिय नीता दीदी!और आदरणीया राजेश दीदी!आप सब का बहुत आभार ।सादर
Comment by Rahila on October 15, 2017 at 8:22pm
आदरणीय कबीर साहब!आदाब,बहुत शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए।सादर
Comment by Sushil Sarna on October 11, 2017 at 7:54pm

मार्मिकता से लिपटी इस संदेशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2017 at 7:03pm

दूसरों के मारे पत्थर भी सहन हो जाते हैं किन्तु अपनों के तो फूलों से भी चोट लग जाती है यदि वो फूल मारे गए हों तो 

बहुत ही गहन विश्लेषण है रिश्तों का इस लघु कथा में .बहुत बहुत बधाई इस सार्थक लघु कथा के लिए प्रिय राहिला जी 

Comment by Nita Kasar on October 11, 2017 at 5:03pm
सुंदर संदेशप्रद कथा बधाई आद० प्रिय राहिला जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 3:37pm

अच्छी लघुकथा है आदरणीया राहिला जी | हार्दिक बधाई |

Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 11:25am
मोहतरमा राहिला जी आदाब,अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार ।नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
31 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service