आदरणीय साथिओ,
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वाह ! वाह ! बहुत बहुत बढ़िया कथानक , कसा हुआ शिल्प , बेहतरीन शैली । सब कुछ जानदार ! बहुत बहुत बधाई इस लघु कथा हेतु , सीमू ।
आ. सीमा जी, सर्वप्रथम तो ग्रे शेड के कैरेक्टर को ले कर लघुकथा लिखने के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. अब कुछ बातें आपकी इस लघुकथा के सम्बन्ध में :
1. ग्रे शेड को उभारने के लिए आपने जिन दो घटनाओं को लिया है वो प्रभावी नहीं बन पायीं.
2. //साइकिल पर पैडल मारता घर की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर बढ़ा ही था// कौन? "साइकिल पर पैडल मारता वह घर की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर बढ़ा ही था"
3. //टक्कर हो गई थी। पर ज़्यादा चोट नहीं लगी किसी के।// जब किसी को ज़्यादा चोट नहीं लगी तो वह सड़क पर अपना नियुक्ति पत्र कैसे भूल गया?
4. //ये क्या है? रद्दी से कागज़ लग रहे हैं।// नियुक्ति पत्र तो हाल ही में आया होगा. वह रद्दी कैसे लगने लगा?
सादर.
सर्व प्रथम ह्रदय से आभार भाई महेंद्र कुमार जी कथा की इतनी विशद विवेचना हेतु.
आप कह सकतें हैं कि ग्रे कैरक्टर को लेकर रचना लिखी है, पर ये सहज मानवीय गुण हैं जिस से हम आप कोई इंकार नहीं कर सकते कि आर्थिक तंगी के दौर में ईमान पर कायम रहना और कठिन हो जाता है. या दूसरे शब्दों में कहें तो मुफ्त में मिलने वाली वस्तु की और आकृष्ट हो जाना आम सी बात है.
१- मुझे नहीं लगा कि इन घटनाओं से पात्र का चरित्र प्रकट नहीं हुआ अन्यथा कथा पटल पर नहीं रखती.
२-इस पॉइंट से सहमत हूँ. पात्र को नाम दूँ या सिर्फ सर्वनाम से काम चलता है,इस दुविधा के चलते यह त्रुटि हुई जो वाक्य से कर्ता ही गायब हो गया.
३- टक्कर हुई सामान बिखर गया. हो सकता है डाकिया हो या कोई अन्य संदेशवाहक हो जिसका ज़िक्र कथा में नहीं है, कथ्य में मूल बात ये हैं भी नहीं कि नियुक्त पत्र किसने कैसे क्यों गिराया. बात यह है कि जिसको मिला उसने जान कर, परख कर, उस पत्र के साथ क्या किया. आवश्यक नहीं हैं कि जिसका नियुक्ति पत्र हो उससे ही गिरे बल्कि उससे खोना तो मुश्किल है क्योंकि उसके लिए तो प्राणों से कम कीमती नहीं होगा.
४- गौर करें कि जो अनपढ़ या नाम मात्र की पढीलिखी स्त्री उस लिफाफे में उम्मीद कर रही है कि नोट अथवा जमीन जायजाद के कागजात हो सकते हैं उसके लिए किसी और का नियुक्ति पत्र रद्दी ही तो है. 'रद्दी' शब्द का प्रयोग यहाँ अभिधात्मक न होकर लक्षणात्मक है.
सादर आशा है आपके सभी प्रश्नों का समुचित उत्तर दे सकी हूँ.
बहुत ही बढ़िया लघुकथा हो है सीमा सिंह जी, प्रदत्त विषय को कुशलता से परिभाषित किया है. हार्दिक बधाई प्रेषित है.
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