For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -आग हम अंदर लिए हैं

2122 2122 2122 2122
वो किसी पाषाण युग के वास्ते अवसर लिए हैं ।
देखिये कुछ लोग अपने हाथ मे पत्थर लिए हैं ।।

है उन्हें दरकार लाशों की चुनावों में कहीं से ।
अम्न के क़ातिल नए अंदाज में ख़ंजर लिए हैं ।।

जो बड़े मासूम से दिखते ज़माने को यहां पर ।
हां वही नेता सुरक्षा में कई नौकर लिए हैं ।।

अब कहाँ इस दौर में जिंदा बची इंसानियत है ।
मुजरिमों को देखिये अब देह पर खद्दर लिए हैं।।

सुब्ह वो देते नसीहत भ्रष्टता से दूर रहिये ।
बेअदब होकर जो रिश्वत ही यहां शबभर लिए हैं ।।

ख्वाहिशें इनकी जुदा हैं खूब तानाशाहियां भी ।
ये चमन के वास्ते उजड़ा हुआ मंजर लिए हैं ।।

ज़ह्र फैला इस कदर, कि अब घुटन बढ़ने लगी है ।
जिंदगी के फैसले हमने भी शायद कर लिए हैं ।।

रह गए काबिल सभी कानून ये अंधा हुआ जब ।
वो तरक्की मुल्क में अब जात के दम पर लिए हैं।।

मिट गया उस मुल्क का नामोनिशां जिस मुल्क में सब ।
आलिमों ने भीख की खातिर बिछा बिस्तर लिए हैं।।

ऐ सियासत बाज आ तू कुछ तो कुदरत से डराकर ।
जल न जाए मुल्क सारा आग हम अंदर लिए हैं ।।

शब-रात
आलिम - विद्वान

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2017 at 8:00pm
आ.भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by Manoj kumar shrivastava on November 25, 2017 at 4:31pm
आदरणीय त्रिपाठी जी, व्यंग्य रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें।
Comment by Samar kabeer on November 23, 2017 at 10:01pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'हाँ वही नेता सुरक्षा में कई रहबर लिए हैं'
इस मिसरे में क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है,'रहबर'का अर्थ रास्ता दिखाने वाला होता है,जिसे आपने 'अंग रक्षक'के अर्थ में ले लिया है,इसे बदलने का प्रयास करें ।

'वो सुबह देते नसीहत ---
बेरहम होकर जो रिश्वत को यहाँ शब भर लिए हैं'
ऊला मिसरे में 'वो सुबह'की जगह "सुब्ह वो'करना उचित होगा,और सानी मिसरे में 'बेरहम'शब्द ग़लत है,सही शब्द है "बेरह्म" दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में 'को'शब्द भर्ती का है, इन त्रुटियों को ठीक कीजियेगा ।

'मिट गया उस मुल्क का नामो निशाँ जिस मुल्क में सब
आलिमों ने भीख की ख़ातिर बिछा चादर लिए हैं'
ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,'मुल्क'की जगह "देश"करना उचित होगा,और सानी मिसरे में आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की "चादर"शब्द स्त्रीलिंग है ।
Comment by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 1:14pm
है उन्हें दरकार लाशों की चुनावों में कहीं से ।
अम्न के क़ातिल नए अंदाज में ख़ंजर लिए हैं ।।बहुत ख़ूब! बहुत ख़ूब!! बहुत ही सामयिक शे'र है ।
शे'रत्रदर शे'रत्रदाद के साथ मुबारकबाद आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service