आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, इतिहास से छेड़छाड़ कुछ वैसा ही है कि जब आप अपनी लकीर बड़ी न कर पाएँ तो दूसरी लकीर को छोटा कर दें. यह बहुत चिन्ताजनक विषय है जिसे आधार बनाकर आपने एक उत्कृष्ट लघुकथा लिखी है. इस हेतु मेरी तरफ़ से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. शीर्षक चयन पर आपको अलग से बधाई प्रेषित है. सादर.
मेरी इस रचना पर समय देकर अनुमोदन, हौसला अफ़ज़ाई और अपने विचार साझा करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार जी।
समसामयिकता का पुट लिए इतिहास और ऐतिहासिक चरित्रों की प्रासंगिकता पर अच्छी विचारोत्तोजक प्रस्तुति , मेरे विचार से अंतिम पंक्ति नहीं होती तब भी प्रभाव में कमी नहीं होती ...हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी
बहुत ही अच्छी रचना हुई है आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब, सादर बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु| मेरे अनुसार रचना के शीर्षक पर कुछ कार्य और किया जा सकता है| सादर विचारार्थ,
जयचंद
जोगिन्दर ने कभी इतिहास नहीं पढ़ा था पर ये एक नाम जयचंद पिछले छः महीने से उसकी आत्मा पर दिन रात कोड़े बरसा रहा था I
छः महीने पहले उस दिन देश के सभी अखबारों और टीवी चेनलों पर जोगिन्दर का बेटा सुखविंदर छाया हुआ था I सिपाही सुखविंदर जिसने सेना के गोपनीय कागज़ात दुश्मन देश के एजेंट के हाथों बेच दिए थे I सभी सुखविंदर के लिए कड़ी सजा की माँग कर रहे थे I गाँव की दीवारें ‘ गद्दार जयचंद को फाँसी दो , देश को बेचने वाले को फाँसी दो’ के नारों से पट गई थीं I
और आज सुबह सुखविंदर की लाश जोगिन्दर के खेत के बरगद पर झूलती मिली I गाँव वालों ,पुलिस और सेना वालो की आवाजाही के बीच, जोगिन्दर बुत बने बैठा थाI उसकी मुट्ठी में वो ख़त भिंचा हुआ था जो थोड़ी देर पहले सुक्खी का शव उतारते हुए उसकी जेब में मिला था I
" बाउजी मै गद्दार नहीं हूँI अपनी गद्दारी छिपाने के लिए बड़े ऑफिसरों ने मुझे फँसाया हैI आपको ये बताने के लिए ही मै जेल से भागा हूँ I मुझे सीने से लगा कर कह देना कि आपको मुझ पर भरोसा है..बस्स .."
अब तक बुत बना हुआ जोगिन्दर अचानक खड़ा होकर जोर से चीखने लगा “ मेरा बेटा गद्दार नहीं था! जयचंद नहीं था ! सुन रहे हो ! तुम हो गद्दार ! मै नहीं छोडूंगा तुम जयचंदों को I’’
बूढा जोगिन्दर पागलों की तरह चीखता हुआ सेना के लोगों पर पत्थर बरसाने लगा I
मौलिक व् अप्रकाशित
बहुत ही लाजवाब लघुकथा कही है आ० प्रतिभा पाण्डेय जी. कथानक भी एकदम नया चुना है. इस सुंदर लघुकथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकर करें. जोगिन्द्र और सुखविंदर का बार बार आना थोड़ा सा भ्रमित कर रहा है. यदि पहले दो पैरों को कुछ यूँ लिखा जाए तो कैसा रहे?
//जोगिन्दर ने कभी इतिहास नहीं पढ़ा था, पर ये एक नाम जयचंद पिछले छः महीने से उसकी आत्मा पर दिन रात कोड़े बरसा रहा थाI छः महीने पहले उस दिन देश के सभी अखबारों और टीवी चेनलों पर उसका बेटा सुखविंदर छाया हुआ था, जिसने सेना के गोपनीय कागज़ात दुश्मन देश के एजेंट के हाथों बेच दिए थे I सभी उसके लिए कड़ी सजा की माँग कर रहे थे I गाँव की दीवारें ‘ गद्दार जयचंद को फाँसी दो , देश को बेचने वाले को फाँसी दो’ के नारों से पट गई थीं I
कथा पर समय देने और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय योगराज जी . आपकी सलाह उचित है
मुहतर्मा प्रतिभा साहिबा ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा हुई है ।मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक जी
हार्दिक आभार आदरणीय सतविंदर भाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |