For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (मैं क़िस्मत आज़माई कर रहा हूँ )

(मफ़ाईलुन -मफ़ाईलुन- फ़ऊलन)


मैं क़िस्मत आज़माई कर रहा हूँ |
शुरूए आशनाई कर रहा हूँ |

चुरा कर वो नज़र कहते यही हैं
मैं उनसे बेवफ़ाई कर रहा हूँ |

दिया है सिर्फ़ शीशा एब जू को
मैं कब उसकी बुराई कर रहा हूँ |

जमी जो धूल दिल के आइने पर
उसी की मैं सफ़ाई कर रहा हूँ |

सितमगर सिर्फ़ हक़ माँगा है अपना
मैं कब बेजा लड़ाई कर रहा हूँ |

परख लेना कभी भी वक़्ते मुश्किल
नहीं मैं ख़ुद नुमाई कर रहा हूँ |

किसे तस्दीक़ है अंजाम का डर
मैं आगाज़े रसाई कर रहा हूँ |

एबजू --कमी ढूँढने वाला
आशनाई --दोस्ती , मुहब्बत
खुद नुमाई --शेखी बघारना
रसाई --पहचान , उल्फ़त

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 2, 2018 at 10:11pm

जनाब ब्रजेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई
का बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 2, 2018 at 9:47pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 2, 2018 at 2:11pm

मुहतरम जनाब विजय साहिब ,ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by vijay nikore on February 2, 2018 at 1:12pm

//किसे तस्दीक़ है अंजाम का डर 
मैं आगाज़े रसाई कर रहा हूँ |//...

वाह, ऐसी गज़ल से दिल खुश हुआ। आपको बधाई, तस्दीक़ अहमद साहिब।

Comment by Samar kabeer on February 2, 2018 at 12:07pm

मैंने भी मुशायरे को और आप सब को बहुत याद किया,आप सबकी दुआओं से अब तबीअत कुछ बहतर है, ओबीओ ज़िंदाबाद ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 1, 2018 at 8:54pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल में शिरकत और आपके मशवरे का बहुत बहुत शुक्रिया। बेहद खुशी हुई आप सेहत याब हो कर वापस ओ बी ओ से जुड़ गए , आपके बग़ैर इस बार मुशायरे का प्रोग्राम फीका फीका रहा ।

Comment by Samar kabeer on February 1, 2018 at 5:47pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'परख लेना कभी भी वक़्ते मुश्किल

नहीं मैं ख़ुद नुमाई कर रहा हूँ'

इस शैर के ऊला मिसरे में 'कभी' शब्द के साथ 'भी' का इस्तेमाल मुनासिब नहीं लगता,इस शैर को चाहें तो यूँ किया जा सकता है :-

'परख लेना कभी तू वक़्त-ए-मुश्किल

कहाँ मैं ख़ुद नुमाई कर रहा हूँ'

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 1, 2018 at 9:52am

जनाब नरेंद्र चौहान साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by narendrasinh chauhan on January 31, 2018 at 9:51pm
खु्ब सुन्दर रचना
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2018 at 8:18pm

जनाब राम अवध साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
1 hour ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service