आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
*** ज्यादा सियाना***
निःसंतान और संगनीहीन डुकर , भतीजे और उसकी बहू को ढ़ेरों आशीष देते हुए , परलोक सिधारे थे।
आज उनकी अटारी में गुस्से से फुंकारता उनका का भतीजा अपना आपा खो रहा था।
"तू ! जा और दामोदर चाचा को फौरन बुला कर ला।" बेटा , बाप का आदेश मिलते ही नंगे पैर दौड़ता गया।
"पसीना तो पोंछ लो...,ये बताओ तुमने ठीक से तो सुना था ना?" पत्नी ने संशयपूर्ण भाव से पूछा
" अच्छे से सुना था...खूब अच्छे से सुना था । तभी तो डुकर को दूसरे भाईयों के घर की हवा नहीं लगने दी। पूरे पांच साल तक बुढ़ऊ को पूरी - पकवान में तौला है ।" तभी-
"क्या बात है गौरीशंकर ! क्यूँ बुलाया?" लठिया टेकते हुए दामोदर चाचा ने बखरी में घुसते ही पूछा।
" ये क्या है चाचा ? " उसने चार -चार फुट गहरे खुदे गड्ढों की ओर इशारा करते हुए पूछा ।
"कहाँ क्या है?" उन्होंने ऐनक जरा नीचे खिसका कर ग़ौर से देखते हुए , कंधे उचका कर प्रतिप्रश्न किया।
"बनो मत चाचा! मैनें खुद उस दिन छिप कर आपकी और चाचा की बात सुनी थी । जब आप चाचा से कह रहे थे कि अपने भतीजों को बता क्यों नहीं देते कि अटारी के तल्ले में पुश्तैनी सोना-चांदी गढ़ा है। हो सकता है इसी मोह में वे तेरी सेवाश्रुति कर दें। बोलो , कहा था या नहीं ?" उसने झटके से पसीना झटक कर , आंखे तरेरते हुए पूछा । उसका गुस्सा देख कर बूढ़ा मुस्कुराया और एक हाथ पीछे कमर पर रख, लाठी टेकता हुआ मुड़ कर जाने लगा।
"जाते कहाँ हो ? पहले मेरी बात का जबाब दो।
"बेटा अटारी की खिड़की से बाहर का दरवाजा दिखता था । "
मौलिक एवं अप्रकाशित
प्रिय बहना, कल पढ़ी ये कथा और उन्हीं दो पॉइंट पर अटकी जिनके बारे में में सुनील जी ने जिक्र किया।दो बार पढ़ी तो पहला पॉइंट तो समझ आ गया पर अंतिम पंक्ति न समझ पाई फिर सोचा अन्य कमेंट्स की प्रतिक्षा करूँ।इसको छोड़ दें तो कथा अच्छी लगी।बधाई।
आदरणीय सुनील वर्मा जी और आदरणीया जानकी बिष्ट वाही जी की टिप्पणियों से सहमत हूं। संकलन के समय कुछ बदलाव किए जा सकते हैं। बढ़िया उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राहिला जी।
लघुकथा कई बार पढने के बाद समझ आई अजीजा राहिला जी. लेकिन कथ्य बहुत उलझा हुआ है, जबकि स्पष्टता लघुकथा की एक मुख्य शर्त है. अभी कथ्य और शिल्प की दृष्टि से यह रचना काफी समय और मेहनत मांग रही है. बहरहाल सहभगिता हेतु बधाई स्वीकारें.
बहुत शुक्रिया आदरणीय सर जी!मैं दोबारा इस पर काम करूँगी।सादर
आदरणीया राहिला जी, अच्छी लघुकथा है और प्रदत्त विषय से न्याय भी कर रही है. इस हेतु मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. पर कथा थोड़ी उलझी हुई है जिस वजह से एक बार में स्पष्ट नहीं हो पा रही है. आपकी लघुकथा को संशोधित रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद थोड़ी बेहतर हो. सादर.
ज्यादा सियाना
निःसंतान और संगनीहीन डुकर के परलोक सिधारने के बाद उनका भतीजा गौरीशंकर एक दिन अपना आपा खो बैठा।
"तू जा और दामोदर चाचा को फौरन बुला कर ला।" बाप का आदेश मिलते ही बेटा नंगे पैर दौड़ गया।
"पसीना तो पोछ लो। ये बताओ तुमने ठीक से सुना तो था न?" पत्नी ने संशयपूर्ण भाव से पूछा। "अच्छे से सुना था... ख़ूब अच्छे से सुना था। तभी तो डुकर को दूसरे भाईयों के घर की हवा नहीं लगने दी। पूरे पांच साल तक बुढ़ऊ को पूरी- पकवान में तौला है।"
तभी लठिया टेकते हुए दामोदर ने बखरी में घुसते ही पूछा, "क्या बात है गौरीशंकर? क्यूँ बुलाया?"
"ये क्या है चाचा?" गौरीशंकर ने खुदे हुए गड्ढों की ओर इशारा करते हुए पूछा।
"कहाँ क्या है?" उन्होंने ऐनक ज़रा नीचे खिसका कर ग़ौर से देखते हुए कंधे उचका कर प्रतिप्रश्न किया।
"बनो मत चाचा! मैंने खुद उस दिन छिप कर आपकी और डुकर चाचा की बात सुनी थी जब आप चाचा से कह रहे थे कि अपने भतीजों को बता क्यों नहीं देते कि तुम्हारे कमरे में पुश्तैनी सोना-चांदी गड़ा है। हो सकता है इसी मोह में वे तेरी सेवाश्रुति कर दें। बोलो, कहा था या नहीं?" उसने झटके से पसीना झटक कर आंखे तरेरते हुए पूछा।
उसका गुस्सा देख कर दामोदर मुस्कुराया और बिना कुछ कहे एक हाथ पीछे कमर पर रख कर लाठी टेकता हुआ मुड़ कर जाने लगा।
"जाते कहाँ हो? पहले मेरी बात का जवाब दो।" गौरीशंकर ने दोबारा पूछा।
"बेटा, तुम्हारे चाचा डुकर के कमरे की खिड़की से भीतर ही नहीं बाहर भी दिखायी देता है।"
बहुत सार्थक पंच लाइन आदरणीय सर जी! ,
मैं भी कल से कई तरह से इसे सुलझाने में लगी थी। बहुत शुक्रिया।सादर
मोहतरमा राहिला जी आदाब,आयोजन में सहभागिता के लिए धन्यवाद ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |