आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय विरेंद्र्वीर मेहता जी
हार्दिक आभार आदरणीय सुनील वर्मा जी ,
ग़रीबी में स्वार्थ तलाशते भैयाजी के अरमान के ग़ुब्बारे में सुई चुभ गई,।विषयपूर्ण कथा के लिये बधाई आद० प्रतिभा पांडे जी ।
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभ पांडे जी।बेहतरीन लघुकथा।सदैव की भाँति इस बार भी आपकी लेखन शैली बेज़ोड़ है।
आपके प्रोत्साहन और सराहना के लिए हार्दिक आभारी हूँ आदरणीय तेजवीर सिंह जी
कथा के मर्म के अनुमोदन व् उत्साहवर्धन के लिए आपकी हार्दिक आभारी हूँ आदरणीया नीता जी
सपने टूटने का गुस्सा आँखों में लाल डोरे बना रहां था | - - बहुत सुन्दर
हार्दिक आभार आदरणीय लडिवाला जी ..सादर
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी! प्रस्तुत लघुकथा प्रदत्त विषय से पूरी तरह न्याय कर रही है और सोने पे सुहागा इसका शीर्षक । इस लघुकथा में जिस बात से सर्वाधिक प्रभावित किया वह है - / भैया जी ने आँखों पर काला चश्मा चढ़ा लियाI/ यह प्रतीक संकेत करता है भैया जी के स्वार्थी स्वभाव की ओर । सच्चाई को न देखने के लिए ऑंखों पर काला चश्मा चढ़ाना बहुत प्रभावशाली प्रतीक बना है जो किसी भी प्रकार से आरोपित नहीं वरन् शिल्प का एक सहज भाग ही लगता है जो इस प्रतीक की सफलता की निशानी है। लघुकथा के माध्यम से स्वार्थपरकता के लिए गरीबों, किसानों और दलितों को मोहरा बनाने का संदेश सार्थकता से उभर कर सामने आया है । साथ ही जरनल वर्ग की बेचारगी पर भी गहन व्यंग्य कसा गया है । प्रभावशाली लघुकथा प्रेषण हेतु असीम शुभकामनाएं ।
वाह! आदरणीय प्रतिभा दी बहुत सुंदर लघुकथा कही है आपने | हार्दिक बधाई |
संन्यास
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मेरे प्यारे मम्मी-पापा ,
नमस्कार !
उम्मीद करती हूँ आप खुश होंगे । आपकी लंबी उम्र की हृदय से कामना करती हूँ ।
बहुत दिनों से बेचैनी की आग में जल रही हूँ ।
इस आग ने दिल ही नहीं आत्मा को भी झुलसा कर रख दिया है। उस घटना को लाख भुलाने की कोशिश की मगर भूला नहीं सकी । अंदर से इस जीवन से धिक्कार की हूक-सी उठती है । आपने मेरे लालन-पालन में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ी । बेटी होने पर भी मुझ पर दुगुना अभिमान किया ।
लाखों रुपये खर्च कर एमबीबीएस करवाने का फैसला लिया ।मैंने भी आपको तरह-तरह के सपनें दिखाएँ और कहा था कि बहुत बड़ी डॉक्टर बनूँगी और लोगों की सेवा करूँगी । दौलत-शोहरत बटोरूँगी ।
मुझे क्षमा करना । यह सब नहीं हो सकेगा । जिस दरिंदे ने मेरे साथ गलत किया था तब से मेरा मन कहीं नहीं लगता है । मेरी अंतर्रात्मा कहीं ओर चलने का कहती है । अब मैं अपना जो निर्णय बताने जा रहीं हूँ शायद उसको सुनकर आपके पैरों तले की ज़मीन खिसक जाए । मैं सांसारिक जीवन से संयमित जीवन में प्रवेश करना चाहती हूँ अर्थात् संन्यास लेने जा रही हूँ । आचार्य निश्छल सागर से दीक्षा ले रही हूँ । उन्होने मुझे नाम भी दे दिया है ' साध्वी कनकप्रिया ।'
क्षमा के साथ ।
आपकी लाडली बेटी
सुरभि
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
कथा अच्छी है। लड़की यथार्थ में ही सन्यास का निर्णय ले चुकी है। mbbs की पढ़ाई के समय हुआ हादसा उसके सपनों को दिवास्वप्न सा बना गया।
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