आदरणीय साथिओ,
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आपका हार्दिक आभार आदरणीया कनक जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
वाह । बहुत बढ़ीया लघुकथ अनुज । / पोलैण्ड के उस हत्या शिविर / इन चार शब्दों ने लघुकथा की पृष्भूमि को बयां कर दिया। / झील सूख चुकी थी।/ यह चार शब्द भी बहुत कुछ कह जाते हैं। और लघुकथा का अंत इसे नई उँचाइयों पर ले जा रहा है । शीर्षक भी अर्थगर्भी । कुल मिला कर एक संतुलित व प्रभावशाली रचना जो दिए गए विषय से पूरी तरह न्याय कर रही है । शुभाशीष ।
इस प्रयास की सराहना और आपके सुभाशीष का हृदय से आभारी हूँ सर. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
द्वितीय विश्वयुद्ध से सम्बंधित पश्चिमी साहित्य और हॉलीवुड फ़िल्में शुरू से मुझे पसंद रही हैं. बीसवीं सदी के तीसरे दशक में जर्मनी में अडोल्फ़ हिटलर का नाज़ीवाद, एक समुदाय विशेष के विरुद्ध नफरत का माहौल, दो तीन धड़ों में विभाजित विश्व, पर्ल हार्बर पर जापानी हमले तक विश्व युद्ध को यूरोप का संघर्ष कहकर टालने वाले अमरीकी नेताओं के रुख में परिवर्तन आना, सोवियत फौजों का हिटलर के खिलाफ डटकर खड़ा होना, मित्र-राष्ट्रों द्वारा हिटलर के विरुद्ध एकजुट हो जाना, जगह जगह कनसनट्रेशन कैम्पस के आड़ में सामोहिक नरसंहार, लाखों की संख्या में निहत्थे लोगों को गैस चैम्बरस और बायलरस में जिंदा जला जाने की असंख्य घटनाओं का प्रमाणिक और दस्तावेजी सबूत दुनिया के सामने आया है. हिटलर की तथाकथित "आर्यन सुप्रिमेसी" थ्योरी की वजह से आर्यन और नॉन-आर्यन लोगों में शादी तो क्या बल्कि सामान्य सामाजिक सम्बन्धों पर भी रोक लगा दी गई थी जिसका उल्लंघन करने पर मृत्यु दंड तक का प्रावधान था.
क्योंकि मैं यह सब पढता आया हूँ तो मुझे आपकी इस लघुकथा का विषय बिलकुल भी अनजाना नहीं लगा. मुझे प्रसन्नता हुई इस विशिष्ट विषय के चुनाव को देखकर. दरअसल मुझे आपसे ऐसे ही लीक से हटकर विषयों की उम्मीद रहती है. यह बात सिद्ध करती है कि आप साहित्य के इलावा विश्व इतिहास से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं. बहरहाल रचना बेहद प्रभावशाली और अर्थगर्भित हुई है जिस हेतु ढेरों ढेर बधाई प्रेषित है.
एक बात बेहद खटक रही है, इस पंक्ति की वजह से आपके 2 नम्बर काट रहा हूँ:
//पोलैण्ड के उस हत्या शिविर //
1. पोलैंड का ज़िक्र करके आपने रचना का दायरा संकुचित कर लिया है. क्योंकि ऐसे कैंप यूरोप में बहुत जगहों पर थे.
2. "हत्या शिविर” लिखकर आपने "एलीमेंट ऑफ़ सरप्राइज़" ख़त्म कर दिया.
//‘‘अरे कोई इस पिलिया का मुँह बन्द कराओ!’’//
यह पढने के बाद पाठक की जिज्ञासा बढायें कि यह बात कहीं क्यों गई?
हार्दिक आभार इस जानकारी और सरप्राइज एलीमेंट संबंधित राय से हमें मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए आदरणीय मंच संचालक महोदय जी। उपरोक्त इतिहास संबंधित पुस्तकों की जानकारी भी चाहता हूं।
इतने कम शब्दों में द्वितीय विश्व युद्ध का ऐसा वर्णन सिर्फ़ आप ही कर सकते हैं सर. बहुत ख़ूब! पूरी कोशिश करूँगा कि बैक पेपर (संशोधन) में किसी तरह से अपने ये दो नम्बर वापस पा सकूँ. वैसे आपकी तरह हॉलीवुड फ़िल्में मुझे भी बहुत पसन्द हैं. गोष्ठी का शीर्षक मिलते ही मैंने सोचा था कि इस बार विश्वयुद्ध पर कुछ कहने की कोशिश करूँगा. बहुत ख़ुशी हुई कि आप सबको मेरा यह प्रयास पसन्द आया. हमेशा की तरह एक बार फिर मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
बहुत ही सुन्दर और विषय को सार्थक करता कथ्य हैं आदरणीय महेंदर कुमार जी, मेरी ओर से तहे दिल से मुबारकबाद भाई जी. हालांकि कथ्य एक लम्बी कहानी का प्लाट है जिसे आपने बड़ी कुशलता से कम शब्दों में समेटने का प्रयास किया हैं, लेकिन फिर आपकी शब्द शैली और रचना की बेहतरीन प्रस्तुति बहुत प्रभावी बनी है. सादर.
आपकी बात से सहमत हूँ आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी. निस्संदेह यह एक ऐसा प्लाट है जिस पर एक लम्बी कहानी लिखी जा सकती है. बस बड़ी मुश्किल से ही मैं इसे समेट पाया हूँ. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब,
लाजवाब , बेहतरीन और अच्छी नाटकीयता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
सादर आदाब आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी. इस प्रयास की सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ. धन्यवाद. सादर.
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,हमेशा की तरह शानदार लघुकथा,प्रदत्त विषय को बख़ूबी परिभाषित किया,इस प्रस्तुति पर ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
सादर आदाब आदरणीय समर कबीर सर. लघुकथा को पसंद करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.
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