आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
हार्दिक बधाई आदरणीय महेन्द्र कुमार जी। बेहतरीन कल्पना की है।साथ ही आपकी मंजी हुई लेखन शैली ने कमाल कर दिया। सुन्दर लघुकथा।
बेहतरीन लघुकथा के साथ गोष्ठी का शुभारंभ करने के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय महेंद्र जी ,सादर
रचना बहुत ही सुन्दर हुयी है आदरणीय महेंद्र कुमार जी, डर एक ऐसी व्याधि के रूप में इंसान के मन में घर कर जाता है, जिसका निदान करना बहुत ही कठिन है..... 'पागल' और 'बीमार' दोनों शब्दों को बहुत ही सटीक तरीके से पाठक के सामने रखा आपने. कथा एक लघुकथा का आनंद तो दे ही रही है, साथ ही एक उम्दा कहानी का मजा भी देती है पाठक को. हार्दिक बधाई भाई जी इस रचना के लिए.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, मन को छु लेने वाली अत्यंत ही संवेदनशील रचना की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
भाई महेंद्र कुमार जी. आपकी लघुकथाओं में 3 विशेषताएं होती हैं; पहली विषय का चुनाव, दूसरी आपकी प्रभावशाली शैली और तीसरी आपकी रचनाओं में "ग्लोबल अपील" का होना. ग्लोबल अपील से अभिप्राय यह है कि जो विषय आप लेते हैं उसमें निहित सन्देश बहुत ही सार्वभौमिक होता है. स्थानीय मुद्दों से रचना का दायरा बहुत संकुचित हो जाता है. लेकिन यदि वही सन्देश वैश्विक परिदृश्य में उभारा जा सके तो रचना का दाय्राभी विस्तृत होता है और कद भी बढ़ता है. पागल-बनाम-बीमार का मुद्दा हरेक हद तोड़ता हुआ पूरे मानव समाज की वेदना जो उजागर कर रहा है जो इस रचना की असली सुन्दरता है. इस उत्कृष्ट लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आ.महेन्द्र कुमार जी पहले बधाई स्वीकार करे. आप हमेशा मनोचिकित्सक/ मनोवैज्ञानिक विषय लेकर आते हैं और उनका निर्वाह भी खूब करते हैं किंतु आपकी रचना के मनोविज्ञान को समझने के लिए मुझे हमेशा रचना को २-३ बार पढना पडता हैं. जो भी हो रचना गहरा संदेश दे रही
दहशत
---------------
जगतदेव अवधपुरी के उत्तराधिकारी बाबा उमाकांत महाराज ने पाण्डाल में हज़ारों की संख्या में बैठे भक्तों को संबोधित करते हुए कहा -" धर्म प्राण प्यारे भक्तों , आज घोर कलयुग है । पहले के समय में लोग महात्माओं के पास सत्संग सुनने जाते थे । इससे घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती थी , परम आनंद की प्राप्ति होती थी , गृहस्थ जीवन खुशहाल होता था । लेकिन अब लोगों ने महात्माओं के पास जाना बंद कर दिया । इसलिए लड़ाई-झगड़े , हत्या , मारपीट , व्यापक हिंसा , तकरार , दुष्कर्म , बलात्कार , तलाक , लूट, धोखाधड़ी आदि की संस्कृति पनप रही है । इन सबसे छुटकारा पाने के लिए संतों , महात्माओं के पास जाना चाहिए , उनके सान्निध्य में रहना चाहिए , उनकी सेवा -चाकरी करना चाहिए । कुछ वक़्त आश्रम में बिताना चाहिए............।" इधर दो महिलाएँ आपस में खुसुर-पुसुर कर रही थी कि -"क्या संतों का चरित्र ठीक है ? क्या आश्रम सुरक्षित हैं ख़ासतौर से हम महिलाओं के लिए ? जिनको संत , महात्मा और गुरु माना था वे सब तो जेल में हैं ।" इतने में दूसरी महिला बोली -" ठीक कहती हो बहन , अब तो साधु - संत , महात्मा और गुरुओं के नाम से ही डर लगता है । "
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
आदाब। सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक सरोवर के एक बहुत ही ताज़े ज़वलंत मुद्दे और चिंतन को उभारती बेहतरीन आरंभिक प्रविष्टि के लिए तहे दिल से बहुत- बहुत मुबारकबाद और आभार मुहतरम जनाब ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' जी।
नाम ग़लत हो गया शायद। बहुत-बहुत बधाई और आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहिब।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
आदरणीय आरिफ जी वर्तमान में समाज में पथ प्रदर्शकों का जो घिनोना रूप देखा उसे बखूबी चित्रित किया है आपने रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
हार्दिक आभार आदरणीय आशुतोष जी ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |