आदरणीय साथिओ,
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उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक हार्दिक आभार डॉ आशुतोष मिश्रा जी.
मुहतरम जनाब योगराज साहिब, प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
हौसला अफजाई के लिए दिल से शुकरगुज़ार हूँ आ० तस्दीक अहमद खान साहिब.
लेखकों की जमात की नाज़ुक रग पर हाथ रख दिया आपने आदरणीय योगराज जी। अपनी रचना की आलोचना का डर थोड़ा बहुत सब पर हावी रहता ही है। बधाई आपको
अगर यही आलोचना किसी मर्द लेखक को उसकी पत्नी के माध्यम से सहनी पड़ जाए तो सोचिए मेल शौवनिज्म को कैसा धक्का लगता होगा. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आ० प्रतिभा पाण्डेय जी.
आ. भाई जी बडा ही कटू सत्य उजगार किया हैं आपने. यहाँ तो परम मित्र की रचना पर पत्नी ने बात की थी लेकिन अक अनजाना दर जेहन में उतर गया कि कही..मेरे लिखे को भी ...I बहुत उम्दा कथानक चयन के लिए बधाई आपको.
हार्दिक आभार आ० नयना ताई आपने रचना के मर्म को एकदम सही पकड़ा है.
उम्दा कथानक एंव विषय को बहुत सुन्दरता से परिभाषित करती लघुकथा है आदरणीय ।
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आदाब,
बहुत लंबान खींचा ! बहुत लंबान खींचा ! एक मैट्रिक पास बीवी से साहित्य की इतनी पकड़ या परिपक्वता कुछ हजम नहीं हुई । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी। आपकी लघुकथाओं के अध्ययन से जो लिखने की प्रेरणा मिलती है, और उससे जो हमारे लेखन के दृष्टिकोण में बदलाव आता है, वह अवर्णनीय है।
"कोहनी रखकर अपने पूरे शरीर का वज़न उसपर डाल दिया"
वाह गज़ब पंक्ति। डर का कितना महीन विश्लेषण।
लम्बान की परिभाषा क्या है आदरणीय? ज़रा मार्गदर्शन करें कि कौन कौन सी पँक्तियाँ इसमे से हटाऊँ?
प्रवाहमय मज़े के साथ ही आत्मावलोकन कराती बेहतरीन उम्दा लघुकथा के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और हार्दिक आभार मुहतरम जनाब योगराज प्रभाकर साहिब। यदि मैट्रिक तक भी मातृभाषा के प्रति रुझान के साथ अध्ययन किया और कराया गया हो तो वह मैट्रिक पास भी सतत् पठन के कारण साहित्यिक शैली आदि की यूं पारखी बिल्कुल हो सकती हैं और ऐसे संवाद कर सकती हैं! .. और फिर पति देव जी भी साहित्य प्रेमी या लेखक हों, तो सोने पर सुहागा। हां, आम पाठकगण के रुझान अनुसार पत्नीश्री के कुछ संवाद बोलचाल वाली सरल शैली मेंं किए जा सकते हैं, किंतु अनिवार्य नहीं है, क्योंकि संदेश बाख़ूबी सम्प्रेषित हो रहे हैं। शीर्षक भी बेेहतरीन है। सादर।
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