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लिखा बेहतर नहीं जाता- गजल

1222  1222 1222 1222

 

शिकायत है बहुत खुद से कि मैं क्यों कर नहीं जाता  

मुझे जिससे मुहब्बत है, उसी के घर नहीं जाता

 

अगर मिलना है’ उससे तो, तुम्हें जाना पड़ेगा खुद

चला करता है दरिया ही, कहीं सागर नहीं जाता

 

मधुर यादों के उपवन में, मैं खोया इस तरह से हूँ,  

कि गम का एक भी झौंका, मुझे छूकर नहीं जाता  

 

कहाँ कैसे मिलेगा वो, समझता ही नहीं ये मन

भटकता खूब है बाहर, मगर भीतर नहीं जाता

 

कलम अपनी उठा कर हम, कभी कुछ भी लिखें लेकिन          

न हो यदि दर्द दिल में तो, लिखा बेहतर नहीं जाता

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 3:20pm

हृदय से आभार आदरणीया Neelam Upadhyaya जी आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 1:34pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 1:33pm

आदरणीया Rakshita Singh जी आपका दिल से शुक्रिया

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 1:32pm

 आदरणीय  Shyam Narain Verma जी आपका दिल से शुक्रिया

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 1:21pm

आदरणीय Mahendra Kumar जी आपका दिल से शुक्रिया , आपका सुझाव अनुकरणीय है, सुधार करता हूँ. 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 1:17pm

आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by Neelam Upadhyaya on June 12, 2018 at 11:00am

आदरणीय बसंत कुमार जी, बहुत ही बेहतरीन गजल। मुबारकबाद कुबूल करें ।

"चला करता है दरिया ही, कहीं सागर नहीं जाता"

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2018 at 5:50am

आ. भाई बसंत जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई स्वीकारें । 

Comment by रक्षिता सिंह on June 12, 2018 at 12:10am

आदरणीय बसंत जी नमस्कार,

यूँ  तो पूरी गज़ल ही बेहतरीन है ...परन्तु गज़ल की आखरी पंक्ति बेहद आकर्षक है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें ...

Comment by Mahendra Kumar on June 11, 2018 at 7:26pm

बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय बसंत जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.

//न हो यदि दर्द दिल में तो, लिखा बेहतर नहीं जाता// क्या यह पंक्ति इस तरह हो सकती है : "नहीं जो दर्द हो दिल में, लिखा बेहतर नहीं जाता" देख लीजिएगा.

सादर.

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