आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी। बेहतरीन लघुकथा ।अधिकतर परिवारों में स्त्रियाँ ऐसा ही व्यवहार करती हैं लड़कियों के साथ, क्योंकि उनके साथ भी ऐसा ही हुआ होता है, तो वे इसे ही नियम या परंपरा मान बैठती हैं,और उसी प्रकार इसे निभाती रहती हैं। लेकिन अब धीरे धीरे सुधार हो रहा है।पढ़े लिखे और जागरूक परिवार इस कुरीति को खत्म कर रहे हैं। बढ़िया लघुकथा।
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
जनाब मुजफ्फर इकबाल साहिब , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब , बहुत ही बढ़िया इंसाफ। बेटे और बेटी में क्या फर्क, अपने लिए तो दोनों ही बराबर हैं। । बहुत ही अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें।
मुह तरमा नीलम साहिबा , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
लघुकथा द्वारा बेटे-बेटी के बीच भेदभाव को बताया हैं,वो आज भी अधिकांशतः परिवारों में होता हैं.दुःख तो तब होता हैं जब ये भेदभाव माँ दादी नानी अर्थात महिला द्वारा किया जाता हैं.और वास्तव मव समानता केवल तीज त्यौहारों पर ही नही बल्कि हर क्षेत्र में दी जाए तब इस कुरीति का अंत होगा.हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सर जी.
मुह तरमा बबिता साहिबा , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
बहुत सुंदर रचना आदरणीय तस्दीक़ जी ,बधाई आपको ,सादर
मुह तरमा बरखा साहिबा , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,
प्रदत्त विषय और ईद की ख़ुशियों को फिर से ताज़ा करती भेदभाव को मिटाती साधारण लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
मुहतरम जनाब आरिफ साहिब आ दाब, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
बेटे और बेटी में फ़र्क़ कैसा, बहुत बढ़िया और सकारात्मक रचना विषय पर. बहुत बहुत बधाई आपको आ तस्दीक़ अहमद खान साहब
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