आदरणीय साथिओ,
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लघुकथा को शीर्षक से दुबारा पढ़ें कप्तान साहिब, लघुकथा शीशे की तरह स्पष्ट और साफ है। :-)
बिल्कुल सही कहा आदरणीय सर रवि प्रभाकर साहिब। शुक्रिया।
कथा का शीर्षक और अंतिम पंक्ति // तू वो नहीं देख पायगी जो मैं देख रही हूँ। // सहज ही रचना को बेहतरीन लुक दे जाती है रवि भाई जी....
रचना पर समय व् समीक्षा देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय विनय जी।
हार्दिक आभार आदरणीय विनय जी
शानदार लघुकथा आदरणीय प्रतिभा जी! कुछ न कहकर सब कुछ कह दिया । लघुकथा का शीर्षक पूरे कथानक के भाव को सम्प्रेषित कर रहा है । इस लघुकथा का वैशिष्टय है इसका सटीक शीर्षक चयन । यह शीर्षक स्थूल न होकर एक सूक्ष्म व भाव प्रधान शीर्षक है जो लघुकथा में निहित संदेश को मुखरता से सम्प्रेषित कर रहा है । इस सारगर्भित व अर्थगंभीर लघुकथा हेतु ढेरों शुभकामनाएं । सादर
उत्साहवर्धन करती इस टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी
शीर्षक के साथ कहे व अनकहे में बहुत कुछ इशारों में बाख़ूबी कहते हुए बेहतरीन पात्र नामों और शैली में बहुत ही विचारोत्तेजक समसामयिक मानवेतर लघुकथा सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी और यूं हमें मार्गदर्शन देने के लिए हार्दिक आभार। सादर।
कथा पर अपनी अमूल्य टिपण्णी व् उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी आदाब,
मानवीकरण शैली में लिखी बहुत ही कटाक्षपूर्ण लघुकथा । क्या किसी वर्ग विशेष को ही ज़िम्मेदार ठहराना उचित है ? हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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//क्या किसी वर्ग विशेष को ही ज़िम्मेदार ठहराना उचित है// तथाकथित गौरक्षकों की इसी सोच पर तो कटाक्ष है आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी| कथा पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार
क्या बात है!इशारों में सब कुछ कह गईं।आपको बधाइयाँ।
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