आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी। गोष्ठी का शुभारंभ एक बेहतरीन लघुकथा द्वारा करने हेतु।लघुकथा का विषय नया और अनूठा है।लेखन शैली भी उत्तम है।कथ्य का निर्वाह भी बढ़िया है।लेकिन मुझे केवल एक बात अखर रही है कि यह विवाद इतना समय निकलने के बाद क्यों शुरू हुआ। बच्चा अब आठ साल का है।विवाद करीब डेढ़ साल से है यानी उस वक्त बच्चा साढ़े छह साल का रहा होगा। इसे अगर सुधार लें तो लघुकथा और प्रभावशाली हो जायेगी।सादर।
जी तेजवीर जी। आपका सुझाव बहुत मायने रखता है। गहनता से कथा का अध्ययन करने के लिए आभार।
शक में एक बिंदु बेटे की शक्ल का न मिलना भी है। इसलिए उम्र थोड़ी ज्यादा रखी।
हालांकि आपकी बात के बाद सारे विचार से लगता है कि बच्चे की उम्र 2.5 से तीन साल उपयुक्त रहेगी।
कृपया राय दीजियेगा
आदरणीय अमित जी, बिलकुल सही सोचा है आपने।दो ढाई साल में भी बच्चे की शक्ल सूरत स्पष्ट हो जाती है।
जी तेजवीर जी।
शक्ल मिलना मां-बाप के वंश पर निर्भर करता है। यह एक बेतुका शक है विज्ञान के नज़रिए से शिक्षित वर्ग के पतियों में। कई बच्चों की शक्ल में उम्र के हर चरण में अद्भुत बदलाव आते हैं। एक ऐसा केस देखा गया है कि तीन साल की उम्र तक बेटे की शक्ल आश्चर्यजनक रही। लेकिन पांच साल की उम्र में बदलाव आये और आठ साल की उम्र में बच्चा बिल्कुल पिता की तरह दिखने लगा चेहरे और आदतों से। रचना में यह मुद्दा बहुत ही विचारणीय है। सादर मार्गदर्शन निवेदित सुधी पाठकों व रचनाकारों से।
भाई अजय गुप्ता भाई जी, किसी की भी उम्र का ज़िक्र किया ही क्यों जाए? हम लघुकथा लिख रहे हैं कोई एफिडेविट थोड़े ही दे रहे हैं!
जी सहमत हूँ आपसे
आनंद द्वारा दूसरो के उलाहने की आड़ में आकर जांच करवाकर, जो आत्मसम्मान को ढेस तपस्या को पहुंचाई जाती हैं उसके एवज में तपस्या द्वारा तलाक का निर्णय सुनाकर आनंद के गाल पर करारा तमाचा।बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
शुक्रिया बबीता जी। कथा का मर्म यही है कि संबंधों में कुछ गुंजाइश बनी रहनी चाहिए। आपने सही पहचाना।
आभार
शानदार लघुकथा आदरणीय अजय जी और निर्वहन भी बढ़िया हार्दिक बधाई स्वीकार करें . संदेह एक लाइलाज रोग है इससे ग्रसित व्यक्ति को दूसरा अवसर देना अपने जीवन को अन्धकार में डालना है .पत्नी का निर्णय एकदम सही है
शुक्रिया प्रतिभा जी।
आप से सकारात्मक टिप्पणी पाकर मन उत्साहित हो उठा है।
बढ़िया लघुकथा से आयोजन का शुभारम्भ करने के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय अजय जी। शीर्षक पर पुनर्विचार निवेदित है। सादर।
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