आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।बेहतरीन लघुकथा।
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर जी।
सहवास
दो हफ़्ते से ज्यादा हो गये हैं उन्हें आय.सी.यू. में भर्ति हुए. बुढापा, डयबिटिज, ब्लडप्रेशर सबने एक साथ जोर मार दिया हैं.वेंटिलेटर सारे शरीर में नलियाँ ही नलियाँ .दस मिनट बैठने देती है सिस्टर. मैं भी तो बुढा गई हूँ . थक जाती हूँ काम करते-करते , पचास साल का साथ हैं उनका अकेले कैसे छोड दू. आज बेटा-बेटी भी आ गये है सहारे के लिए. उनकी भी भाग-दौड चल रही हैं, ये एक्सपर्ट वो एकस्पर्ट. अकेलेपन की कल्पना से मैं भी भयभित हो जाती हूँ कभी-कभी. कई दिन से ठीक से खा नहीं पा रही. वे भी ये जानते हैं मैं उनके बगैर कभी अकेले कुछ नहीं खाती. हमेशा नाराज होते रहते
" राधा! तुम सुनती क्यों नहीं हो मेरा काम ही ऐसा हैं देर-सबेर हो ही जाती हैं तुम वक्त पर खा लिया करो. वर्ना बाद में बिमारीया घेर लेंगी तुम्हें." पर मैं जानती थी मैंने खा लिया तो वे खुद के साथ बेपरवाह हो जाएँगे......" फिर साथ ही खाना हमारे जीवन का हिस्सा बन गया था.
मैं अपने विचारों में मग्न . बेटा-बेटी और डा. साहब कब आकर मेरे समीप खडे हो गये. पता ही नहीं चला. वे तीनों अंग्रेजी में आपस में कुछ बातें कर रहे थे पर मेरा ध्यान नहीं था. बस अब वेंटिलेटर हटा देते हैं जैसे शब्द जरुर मेरे कानों तक पहूँच गये थें .
" माताजी ! अब आप घर जाईए पिछले कई दिनों से आप यहाँ है. बच्चें हैं अब यहाँ पर. आप थोडा आराम किजिए और लौकी का सूप बनाकर भेजिए पेशेंट के लिए." डा. साहब कहते हुए बाहर निकल गये
" चलो माँ ! चलते हैं.....भैया है यहाँ पर." शिनू मेरा हाथ पकडकर उठाते हुए बोली.
मैं अनमने मन से उठकर चल दी पर मेरा मन वहीं छूट गया. घर आकर नहाया, खाना खाया थोडा और सूप बनाकर बेटी से जिद करने लगी अब चलो भी फिर से अस्पताल तुम्हारे पापा इतने सालो में कभी... दो घंटा गुजर गया हैं हमें घर आए.
" मम्मा! आप थोडा आराम कर लेती तो... मैं ड्रायवर के साथ सूप....." शिनू ने कहा
" तो तु रहने दे. तू आराम कर. मैं अपने से निकल जाऊँगी." मैनें उससे कहा और बाहर निकलने लगी तभी
" मम्मा! मम्मा! रुको तो. भैया का फोन....." मगर मैं कहा सुनने वाली .
"तुमने मुझे जबरन खिला दिया.पापा वहा भूखे बैठे हैं" थर्मस उठाकर मैं बाहर निकलने को हुई
गेट पर पडौसी शर्मा जी और... को देखते ही धडकन बढ गई.
"शिनू! शिनू! मैं ना कहती थी वो मेरे बिना ....नहीं---नहीं ...."
शानू-शिनू ने मेरी दोनो बाहें थाम रखी थी.
मौलिक व अप्रकाशित
आपसी प्रेम भी तो आस्था का ही एक रूप हैI बहुत अच्छी लघुकथा हुई है नयना ताई, बधाई प्रेषित हैI पंक्चुएशन/भाषा-वर्तनी/हिज्जे की त्रुटियाँ पोस्ट करने से पहले अवश्य देख लिया करें I क्योंकि रचना चांगली लगणी पाहिजे न?
नमस्कार सर. पता नहीं क्यो जब मैं अतिव्यस्त होती हूँ तभी मुझे कथा सुझती हैं आप तो जानते आज का अंतिम दिन हैं रिटर्न फाइलिंग का और अचानक ये कथानक सुझा. ये सोचकर पोस्ट कर दी कि वर्तनी सुधार मैं संकलन में कर लूँगी. अगली बार के लिए ध्यान रखूँगी. आपने रचना पसंद की इस हेतु आभार. सभी की रचनाएँ भी अब कल पढूँगी. इस बार क्षमा.
कोणत्याही परिस्थितीला या वेळी दिला जाणार नाही, अन्यथा आपण तात्पुरते व्हाल ताई.
भीतर तक छिन्न-छिन्न कर देती एक एक पंक्ति, एक एक संवाद।
आपसी प्रेम और समर्पण में आस्था का उदाहरण देती लघुकथा। बहुत अच्छी लगी।
आपसी प्रेम के कथ्य को जिस प्रभावी ढंग से आपने प्रस्तुत किया आदरणीया नयना जी। वह सहज ही प्रभावी और पदत्त विषय को सार्थक करने में सक्षम है, और कुछ त्रुटियों के कारण अवश्य भाव असहज होते है। बरहाल अनुज की ओर से बधाई स्वीकारें आदरणीया नयना जी।
आदरणीया नयना आरती जी आदाब,
प्रेम को बेहतरीन कथ्य बनकर लिखी गई सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी।मार्मिक प्रस्तुति।
बढ़िया उम्दा भावपूर्ण रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया नयना(आरती) कानिटकर जी।
प्रदत्त विषय को प्रेम के संदर्भ में अभिव्यक्त कर बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीया नयना जी। मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित है। सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |