आदरणीय साथिओ,
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यथार्थ के धरातल पर आधारित उम्दा लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीया बरखा शुक्ला जी. निश्चित तौर पर व्यक्ति को झूठी उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए. वैसे मुझे लघुकथा में कालखण्ड दोष नज़र आ रहा है. बाकी गुणीजन ही पर अपनी राय रखेंगे. सादर.
बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय महेंद्र जी ,आभार ,सादर
आदरणीया बरखा शुक्ल जी , आम विषय से अलग हटकर समाज के उस तबके के जीवन की सच्चाई को बयाँ करती अच्छी की रचना लघुकथा जिसका किसी से किसी प्रकार की उम्मीद रखने का भी हक़ नहीं है। बधाई स्वीकार करें
बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय नीलम जी ,आभार ,सादर
आदरणीया बरखा शुक्ला जी आदाब,
बहुत ही सशक्त और उम्दा लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय आरिफ़ जी ,आभार ,सादर
मुहतरमा बरखा शुक्ला जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय समर जी ,आभार ,सादर
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय आरिफ़ जी ,आभार ,सादर
बाढ़ राहत कोष - लघुकथा –
"शुक्ला जी, नमस्कार, क्या बिटिया की शादी की तिथि तय हो गयी?”
"अरे कहाँ हुई भाई मनोहर जी।“
"क्यों, अब क्या दिक्कत आ रही है? सब कुछ तो पहले ही तय हो चुका है| ”
शुक्ला जी मनोहर के पास कुर्सी खिसका कर गमगीन चेहरा बना कर बोले,"कमाल करते हो यार, देख नहीं रहे। इस साल बरसात का कहीं अता पता ही नहीं है। बाढ़ नहीं आई तो दहेज़ का जुगाड़ कैसे होगा?”
"आपकी बात तो विचारणीय है। मगर इसका तो इलाज़ किया जा सकता है|”
"यार मनोहर, तुम ही तो शान हो इस आपदा प्रबंधन विभाग की। हम सबकी उम्मीद के चिराग हो। निकालो भैया, कुछ रास्ता निकालो।“
"शुक्ला जी, आप तो खुद भी इस महकमे के बहुत पुराने और माहिर खिलाड़ी हो। आपको तो पता ही है, कितनी सारी सरकारी योजनायें तो केवल कागज पर ही क्रियान्वित होकर समाप्त हो जाती हैं| तो क्या कागजों में बाढ़ नहीं आ सकती|”
"धीरे बोलो यार, तुम्हारी बात में दम तो है। लेकिन ये साले ऑडिट वाले बहुत झमेला करते हैं।“ शुक्ला जी ने मनोहर जी के कान पर फुसफुसाते हुए कहा|
"क्या सर आप भी? थोड़ा बाढ़ का पानी उन पर भी छिड़क देना।“
मौलिक एवम अप्रकाशित
वाह भ्रष्टाचार पर कटाक्ष करती आपकी लघुकथा पूरी परिपक्तता के साथ पढ़ने को मिली। बधाई। लघुकथा ये भी इशारा कर रही है कि भ्रष्टाचार मजबूरी में किया जा रहा है जानबूझकर नहीं क्योंकि दहेज जुटाना है। एक समस्या से कई अन्य समस्याएं समाज में व्याप्त हैं। इसका मतलब ये लघुकथा समाधान भी प्रस्तुत करती है।
हमारी व्यक्तिगत राय है और हमने कई पत्रकारों से भी विनम्रतापूर्वक निवेदन किया है कि वह भी क्षमायाचना के साथ कि हम जाति के जरिये अपने लेख, समाचार, रचनाएं न लिखें। कई बार ऐसा देखा गया है कि हम किसी एक जाति विशेष का उल्लेख करके समूची समुदाय को कटघरे में खड़ा कर देते हैं। आप बड़े हैं अनुभवी हैं सम्मानीय है हमारा आशय समझ गए होंगे।
धन्यवाद
आदरणीय आशीष जी केवल पात्र नामों से जाति विशेष पर कटाक्ष नहीं है यहां। सब ठीक है। हालांकि बिना पात्रनाम के भी यह लघुकथा कही जा सकती है। सादर।
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