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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग-1)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

कृपया मुशायरे सम्बंधित अधिक जानकारी एवं मुशायरा भाग 2 में प्रवेश हेतु नीचे दी गयी लिंक क्लिक करें 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

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तह-ए-दिल से आपका शक्रिया अदा करता हूँ भाई उस्मानी जी। 

जाम ऐसा दिया गया है मुझे
तिश्नगी से मिला गया है मुझे      वाह! वाह!! मज़ा आ गया ।

ख़्वाब झूठे दिखा गया है मुझे
इस तरह से ठगा गया है मुझे    बहुत ख़ूब ! 
          शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।

हार्दिक आभार आ० मोहम्मद आरिफ़ जी। 

वाह! क्या शानदार ग़ज़ल कही है सर आपने। हर शेर ख़ूबसूरत। तीसरा, चौथा, पाँचवाँ और सातवाँ शेर मुझे बेहद पसन्द आये। गिरह भी एकदम हटकर। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए सर। सादर।

इतने मनोयोग से समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु तह-ए-दिल से आपका शक्रिया अदा करता हूँ भाई महेंद्र कुमार जी। 

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है योगराज साहब मुबारकबाद पेश करता हूँ |

दिल से शुक्रिया भाई अनीस शेख़ जी. 

वाह्ह्ह आद० योगराज जी ,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है हर शेर शानदार हुआ किन्तु इन तीनो के लिए तो विशेष दाद हाज़िर है
इक दफ़ा तो तू गुनगुना मुझको 
तेरी ख़ातिर लिखा गया है मुझे----खूबसूरत कहन

डाँट के साथ प्यार बेटी का
याद माँ की दिला गया है मुझे---वाह्ह्ह्हह्ह्ह 

ज़ुल्म सहना भी आ ही जाएगा
सब्र करना तो आ गया है मुझे---उम्दा गिरह 
.

बहुत बहुत शुक्रिया आ० राजेश कुमारी जी.

आदरणीय योगराज भाईजी,  ओबीओ के मंच की यह सबसे प्रतीक्षित घड़ी है. किसी मासिक आयोजन की सौवीं कडी बहुत मायने रखती है. आपको इस मंच का अगुआ होने की सादर बधाइयाँ. 

एक अरसे बाद आपने ग़ज़लग़ोई की है. यह एक बहुत बड़ा अवसर है. 

जाम ऐसा दिया गया है मुझे
तिश्नगी से मिला गया है मुझे  ........    मतले को और कसावट मिलनी थी. बात तो स्पष्ट हो रही है लेकिन कहते हैं न कि बात खुल कर भी आनी चाहिए. ओबीओ का मंच है ही इन कसरतों के लिए.  

ख़्वाब झूठे दिखा गया है मुझे
इस तरह से ठगा गया है मुझे .......     प्रासंगिकता अपनी जगह, एक आम इन्सान की आवाज़ उभरती हुई आयी है.  

चुप न रहता तो और क्या करता
तू बता कब सुना गया है मुझे ........    वाह वाह वाह .. दमदार शेर हुआ है. 
 
चाँद अब मुझसे खार खाएगा
क्यों तू जुगनू बता गया है मुझे ...........वाह कमाल ! ईर्ष्या को खूबसूरती से बाँधा है, आपने आदरणीय .. 

देख पाऊँ न सुन सकूँ कुछ भी
गो अदालत कहा गया है मुझे .......   बहुत ही उम्दा और ऊँचे मेयार का कथ्य वज़न पा गया है.  

इक दफ़ा तो तू गुनगुना मुझको 
तेरी ख़ातिर लिखा गया है मुझे ......   एक और कमाल का शेर ! इस निहोरा का ज़वाब नहीं साहब ! 

डाँट के साथ प्यार बेटी का
याद माँ की दिला गया है मुझे ........  बेटियाँ एक उम्र के बाद अपने बाप की माँ ही होती हैं .. इस भाव को निहायत खूबसूरती से शाब्दिक किया गया है. 

ज़ुल्म सहना भी आ ही जाएगा
सब्र करना तो आ गया है मुझे ....    ग़िरह के शेर से भी ऐसी ही उम्मीद थी. 
आपके अनुभव और आपकी लगन का प्रदर्शन है आपकी यह ग़ज़ल, आदरणीय. 
हार्दिक शुभकामनाएँ और अशेष बधाइयाँ 

आदरणीय सौरभ भाई जी. किसी रचना पर ऐसी विशद टिप्पणी पाना किसी का भी ख्वाब हो सकता है. ओबीओ स्टाइल यह विस्तृत प्रतिक्रिया पाकर मैं भी अभिभूत हूँ. कतिपय किन्तु अपरिहार्य कारणों से बहुत देर से मुशायरे में शिरकत न कर पाने का मुझे भी अफ़सोस है. इस बार आ० समर कबीर साहिब की कृपा से चंद शेअर कह पाया. आपने सराहना की तो मेरा हौसला दोबाला हो गया, ह्रदयतल से आपका आभारी हूँ. क्या ये मान लूँ कि पप्पू को पास-मार्क्स मिल गए?    

आदरणीय योगराज भाई, आपकी दूसरी वाली प्रस्तुति इस बार के मुशायरे की शान है। उस ग़ज़ल को देखा है मैंने, मगर अभी शहर में बाहर होने से अपनी बात नहीं कह पाया हूूँ।

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