आदरणीय साथिओ,
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उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु हृदय से आभारी हूँ आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
वरदान ही समझो — डॉo विजय शंकर
आज पार्टी में मिसेज़ शालिनी कुछ अधिक ही खुश नज़र आ रहीं थीं , बिल्कुल निश्चिन्त सी , उन्मुक्त। वरना प्रायः तो वे पार्टियों में जाती हीं नहीं , जाती भी हैं तो परेशान सी , जल्दी वापस जाना है , बच्चों को जल्दी टाइम से सुलाना है , सुबह जल्दी उठना है , बच्चों को डे-केअर में छोड़ना है , जैसे बहाने, सदैव।
आखिर ऋतु ने उनसे पूछ ही लिया , “ क्या बात है शालिनी आज बड़ी निश्चिंतता है ? कोई उलझन नहीं ?कोई जल्दी नहीं ?”
शालिनी मुस्करा दी। कुछ बोली नहीं। फिर कुछ रुक कर बोली , “ डांस फ्लोर पर चलें ?”
“ अरे वाह ” , ऋतु के मुंह से निकला और वह शालिनी का हाथ पकड़ कर फ्लोर की ओर चल दी। रास्ते में विवेक से उसकी हॉय हेलो भी हुई , आज उसे विवेक भी कुछ एक्ट्रा मस्त नज़र आये। उसने एक बार फिर शालिनी की ओर प्रश्न भरी नज़र डाली , जैसे आश्चर्य से पूछ रही हो , पति पत्नि दोनों इतने प्रसन्न। वह फिर मुस्करा दी।
डांस फ्लोर पर काफी भीड़ थी , लेडीज़ के साथ बच्चे भी उलटे सीधे हाथ - पाँव चला रहे थे।पर सबसे बेखबर शालिनी अपने में मस्त थिरक रही थी। उसे देख कर ऋतु को लगा कि कुछ तो अवश्य है , वह शालिनी को पिछले तीन साल से जानती है , उसे इतना खुश और निश्चिन्त उसने उसे कभी नहीं देखा।हमेशा घर , जॉब, बच्चों की बातें करते मिलती , विवेक भी उसी तरह व्यथित।आजकल जॉब वाली गृहणियों को कैसी-कैसी समस्याओं से रोज़ हे दो-चार होना पड़ता है। उसने सोचा , पूछना ही पड़ेगा , अचानक कौन सी बहार आ गई ?
आखिर थोड़ी देर बाद वह शालिनी को लेकर एक खाली टेबल की ओर बढ़ी और बली , “ चल एक एक कोल्ड ड्रिंक लेते हैं।”
दो सिप लेते ही फिर पूछ ही बैठी , “ ये चक्कार क्या है , आज तुझे बिलकुल कोई फ़िक्र नहीं न बच्चों की , न घर की। बच्चे नाना के यहां गए हैं क्या ? ”
“ नहीं तो “ बड़ा संक्षिप्त सा उत्तर दिया शालिनी ने।
“ तो फिर कौन सा वरदान बरस पड़ा जो मैडम बिलकुल बेखबर , उन्मुक्त ? ”
“ हाँ ये बात तो है , वरदान ही समझो ” फिर कुछ रुक कर बोली , “ पापा जी पिछले महीने रिटायर हो गए और अब मम्मी जी और पापा जी दोनों यहां आ गए , हम लोगों के साथ रहने।”
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी , ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
प्रदत्त विषय पर बहुत ही शानदार लघुकथा कही है आपने आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी. शीर्षक उम्दा है और प्रस्तुति लाजवाब. मेरी तरफ़ से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए.
1. //समस्याओं से रोज़ ही दो-चार होना पड़ता है।//
2. //टेबल की ओर बढ़ी और बोली//
सादर.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी , बधाई के लिए बहुत बहुत आभार एवं सराहना के लिए धन्यवाद , सादर।
अंत में खुलते राज में दो संकेत हैं या तो मम्मी पापा के साथ रहने का सुख या फिर जिन कामों को लेकर तनाव ंव रहती थी उनसे निश्चिन्त हो जायेगी,बधाई विजय सरजी।
आदरणीय सुश्री बबीता गुप्ता जी , बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी, बहुत ही सुंदर लघु कथा को अच्छे ढंग से कहने की बधाई कुबूल करें
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी , बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
कुछ लोग इसे वरदान समझते है तो अधिकांश आजकल इसे अभिशाप ही मानते हैं, बहुत बढ़िया रचना विषय पर. बहुत बहुत बधाई आ डॉ विजय शंकर जी
आदरणीय विनय कुमार जी , आपकी पकड़ को नमन। मैं यही सदेश देना चाहता था कि वास्तव में यह वरदान ही है , विशेषतः नौकरी पेशा दम्पतियों के लिए।
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद। सादर।
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