आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार 92 वां आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
22 दिसंबर 2018 दिन शनिवार से 23 दिसंबर 2018 दिन रविवार तक
इस बार के छंद हैं -
हरिगीतिका छंद और शक्ति छंद
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
साथ ही, रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो छन्द बदल दें.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
हरिगीतिका छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
शक्ति छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 दिसंबर 2018 दिन शनिवार से 23 दिसंबर 2018 दिन रविवार तक यानी दो दिनों के लिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
विशेष :
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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Replies are closed for this discussion.
आदरणीय अखिलेश जी आदाब,
प्रदत्त विषय पर बहुत ही लाजवाब हरिगीतिका छंद । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
अदरणीयआरिफ भाई
छंद की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद, आभार।
आ. भाई अखिलेश जी, चित्र के भावों को उभारने का बेहतरीन प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई
छंद की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद, आभार।
आदरणीय अखिलेश जी चित्रानुरूप सुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई
आदरणीय भाई छोटेलालजी
छंद की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद, आभार।
आदरणीय अखिलेश जी हमेशा की तरह शानदार छंद प्रस्तुती प्रदत्त चित्र पर हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया प्रतिभाजी
छंद की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद, आभार।
दो मुक्तक आल्हा छंद आधारित
मूर्खों की पीठों पर चढ़कर, नित चालाक बनाते काम।
मूर्ख जुगाली करते रहते, मग्न भजे अपने ही राम।
सिर धुन धुन कर भाग्य कोसते, दूजों को फिर देते दोष।
ऐसे नर ही जग में हरदम, होते रहते हैं नाकाम।।
जैसे कोई भैंस आलसी, मूरख त्यों कर्मों से हीन।
आस पास की खबर न रखते,अपनी धुन में रहते लीन।
धूर्त और चालाक आदमी, ऐसों का कर इस्तेमाल।
जग की हर सुविधा को भोगे, भूखे मरते मूरख दीन।
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय बासुदेव अग्रवाल ’नमन’ जी, आल्हा छंद इस बार के आयोजन का छंद नहीं है. अतः आपकी रचना इस आयोजन के लिए स्वीकार्य नहीं है.
इस बार के आयोजन के लिए आप हरिगीतिका छंद या शक्ति छंद में रचनाकर्म करें.
आदरणीय सौरभ जी मेरे मस्तिष्क में बस इतनी सी बात थी कि 22-12 से आयोजन है और चित्र का खाका मस्तिष्क में था बस तथा महाउत्सव वाले नियम कि किसी भी विधा में रचना प्रेषित की जा सकती है, यह रचना इसी मनस्थिति में प्रेषित हो गई। दूसरे कल दोपहर तक केवल आ0 अखिलेश भाई की रचना ही पटल पर थी तो कुछ त्वरित सम्प्रेषण की भी चाहत थी और यह रचना जल्द बाज़ी में लिखकर पोस्ट कर दी जिसका मुझे अत्यंत खेद है।
मेरा निवेदन है कि मेरी रचना और इससे सम्बधित तमाम प्रतिक्रियाएँ मंच से हटा दें।
आदरणीय बासुदेव भाईजी
आ. सौरभ भाई ने पूरी बात कह दी, आप सक्षम हैं शक्ति या हरिगीतिका छंद में प्रयास कीजिए, समय भी है।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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