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//रस्म इंसानियत की यूं भी निभाई जाए ,
आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए |//
वाह वाह क्या खूब मतला कहा और क्या गिरह लगाई है मज़ा आ गया !
//रोशनी चंद मुट्ठियों में न रह जाए कैद ,
लौ तरक्की की हर-एक सिम्त जलाई जाए |//
सही फ़रमाया अरुण भाई, आज जो भी तरक्की हुई है उसका लाभ केवल "इंडिया" तक ही पहुंचा है, जबकि "भारत" आज भी उस उजाले से महरूम है ! इस उम्दा ख्याल को सलाम !
//हर तरफ झूठ के बरगद की काली छाया है ,
अब हथेली पे सच की पौध उगाई जाए |//
क्या कहने हैं, "झूठ का बरगद" - वाह !
//बस लड़ाना ही भाइयों को जिनका मकसद है ,
बांटने वाली वह लकीर मिटाई जाए |//
आज समय की भी यही मांग है कि हर तरह की लकीरों और दूरियों को मिटाकर आपसी भाईचारे को बढाया जाए - सुन्दर शेअर !
//एक अन्ना से ये सूरत न बदलने वाली ,
हर गली में वही हुंकार सुनाई जाए |//
बहुत खूब !
//साथ बरसों में सौ कुबेर बनाये इसने ,
इस सियासत को नयी राह दिखाई जाए |//
//रफ्ता रफ्ता ये कुंद हो गयी है और बेकार ,
इस व्यवस्था पर नयी धार चढ़ाई जाए |//
वाह वाह वाह - बहुत खूब, बेहतरीन शेअर !
//हो सही फैसला हर ख़ास-ओ-आम के हक में ,
और किसी बात पर रिश्वत नहीं खाई जाए |//
सुन्दर ख्याल ! इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आपको दिल से मुबारकबाद देता हूँ अरुण भाई !
आदरणीय श्री योगराज जी आपकी इस विचार परक और प्रेरक समीक्षा ने मेरा उत्साह बढ़ाया है | आभारी हूँ आप सबका स्नेह है जो कुछ -कुछ लिखता रहता हूँ | इस मंच ने मुझे बहुत कुछ दिया है और मांजने का काम किया है | मैं अभी भी खुद को मांज रहा हूँ | तरही के लिए आपको और राणा जी को सफल सञ्चालन हेतु बधाई !!
"साठ बरसों में सौ कुबेर बनाये इसने ,
इस सियासत को नयी राह दिखाई जाए |"
गलती से 'साठ'' kee bajaye " साथ' हो गया है खेद है ..शेर सुधरा हुआ उपर्युक्त रूप में है |
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abhaar edmin jee !! aise hee sneh bana rahe !!
एक अन्ना से ये सूरत न बदलने वाली,
हर गली में वही हुन्कार सुनाई जाये।
बेहतरीन , इस शे"र में "हुन्कार" का कोई ज़वाब नहीं।
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