आदरणीय साथिओ,
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पाई
पाइथागोरस उस बड़े से जहाज में बैठ चुका था जिसमें उसकी प्रेमिका सफ़र कर रही थी। यह जहाज भविष्य के उस बिन्दु पर था जहाँ अब कुछ भी जानना शेष नहीं था।
अब से कुछ समय पहले। "हमने उन सूत्रों का पता लगा लिया है जिनसे ये विश्व संचालित होता है। आप सही थे, ये विश्व संख्याओं से मिलकर ही बना है। अब हम सब कुछ जानते हैं।" पाइथागोरस की विशालकाय प्रतिमा के पास खड़े उस शिष्य ने गर्व के साथ पाइथागोरस से कहा।
"और पाई के मान को?" पाइथागोरस के मन में अभी भी शंका थी।
"उसको भी। अब दुनिया में कुछ भी अपरिमेय या अज्ञात नहीं है। सुख हो या दुःख, हम किसी भी चीज़ को नाप कर उसका मान बता सकते हैं।" पाइथागोरस की आँखों में चमक आ गयी। उसने गगनचुम्बी इमारतों, उनमें लगी बड़ी-बड़ी स्क्रीन, ज़मीन के नीचे दौड़ती मेट्रो और हवा में उड़ती हुई गाड़ियों को देखा। हर तरफ़ संख्याएँ ही संख्याएँ थीं। फूलों की ख़ुशबू हो, चाँद की सुन्दरता हो या कविता का रस, मनुष्य अब सभी चीज़ों की गणना कर सकता था। 'वो बेहद ख़ुश होगी।' पाइथागोरस ने मन ही मन सोचा और अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए चल दिया।
उसकी प्रेमिका उसके सामने ही थी, पहले से भी ज़्यादा ख़ूबसूरत। "थेनो, अब तो तुम मुझसे प्यार करोगी!" उसने ख़ुश होते हुए कहा।
"क्यों?" जवाब प्रश्नवाचक था।
"क्योंकि मैं पाइथागोरस हूँ। दुनिया का पहला दार्शनिक जिसने हज़ारों साल पहले ही बता दिया था कि ये दुनिया कैसी है।" उसने गणना कर के कहा।
"तुम्हारा जोड़ गलत है पाइथागोरस। जीनियस होना प्यार पाने की गारण्टी नहीं है।"
"मैं कुछ समझा नहीं।" पाइथागोरस को आश्चर्य हुआ।
"प्यार वो करता है जिसके पास कोई कमी होती है, जब मेरे पास कोई कमी ही नहीं है तो मैं तुमसे प्यार क्यों करुँगी?" थेनो ने स्पष्ट करते हुए कहा।
"और मेरी भावनाएँ? क्या उनकी कोई कीमत नहीं?" पाइथागोरस ने उसकी आँखों में झाँक कर पूछा।
"तुम गणितज्ञ हो पाइथागोरस। अपनी भावनाओं को नापो और बताओ, क्या वो इतनी कीमती हैं कि मेरा प्यार ख़रीद सकें?" थेनो की आवाज़ में दृढ़ता थी। "इस आदमी को देख रहे हो, ये मेरा होने वाला पति और इस जहाज का मालिक है। और तुम? अपने फटे हुए कपड़ों को देखो और फिर अपनी ख़स्ताहाल सूरत, फिर मुझे देखो। क्या ये इतना मुश्किल समीकरण है? और फिर तुम्हीं ने तो कहा था कि दुनिया संख्याओं से मिलकर बनी है। फिर एक बड़ी संख्या अपने से छोटी संख्या के पास क्यों जाएगी?"
इससे पहले कि पाइथागोरस कुछ कह पाता अचानक ही ज़ोर से बारिश होने लगी। सभी लोग भाग कर जहाज के अन्दर चले गए, रह गया था तो सिर्फ़ पाइथागोरस।
वह अपनी ही रची हुई दुनिया में फंस चुका था। काफी देर तक वहीं जड़वत खड़े रहने के बाद उसने पानी में छलांग लगा दी। वहाँ मजदूरों और ग़रीबों की शक्ल में लाखों लाशें तैर रही थीं। उन सबको किसी न किसी बड़ी संख्या ने मारा था। शीघ्र ही पाइथागोरस भी उनमें से एक बन गया।
(मौलिक व अप्रकाशित)
आदाब। सुस्वागतम। क्या ग़ज़ब करते हो जी अद्भुत दुनिया में गोते लगवाते हो जी! लघुकथा में शिल्प से, परिकल्पना से अद्वितीय बन जाते हो जी! हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब।
सादर आदाब आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. रचना में आपकी उपस्थिति और इस मुक्तकंठ प्रशंसा के लिए हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
कमाल की कल्पना लघुकथा के लिये बधाई आद० महेंद्र कुमार जी ।पाइथागोरस प्रेम के गणित की परिभाषा के मकडजाल में फँस गये ।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता कसार जी. हार्दिक आभार. सादर.
वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित शानदार रचना। बहुत बहुत बधाई।
आभारी हूँ आदरणीय मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीक़ी जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
प्रेम की और भावनाओं की गणना करने वाली कोई ज्यामिति या कोई सूत्र अभी तक कहाँ बना है, गरिन जैसे क्लिष्ट विषय में से पाइथागोरस को लेकर ऐसी कल्पना करना बेहद कठिन कार्य है. लेकिन इसे बेहद सफलता और सहज तरीके से आपने कर दिखाया है जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं आ महेंद्र कुमार जी
रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय विनय कुमार जी. हार्दिक आभार. सादर.
बहुत सुंदर लघुकथा में प्यार की कमाल की पेशकारी पेश की,बधाई हो
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मोहन बेगोवाल जी। हृदय से आभारी हूँ। सादर।
जीवन के गणित में उलझे सवाल काअनंत चिह्न में विलीन होता।बेहतरीन रचना,बधाई,आदरणीय महेंद्र सरजी।
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