For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: फिर नए सपने दिखाना चुप रहो

2122 2122 212

आज उनका है ज़माना चुप रहो ।

गर लुटे सारा खज़ाना चुप रहो ।।

क्या दिया है पांच वर्षों में मुझे ।

मांगते हो मेहनताना चुप रहो ।।

रोटियों के चंद टुकड़े डालकर ।

मेरी गैरत आजमाना चुप रहो ।।

मंदिरों मस्ज़िद से उनका वास्ता ।

हरकतें हैं वहिसियाना चुप रहों ।।

लुट गया जुमलों पे सारा मुल्क जब ।

फिर नये सपने दिखाना चुप रहो ।।

दांव तो अच्छे चले थे जीत के ।

हार पर अब तिलमिलाना चुप रहो ।।

दे दिया नादान को बन्दूक जब ।

बन गया खुद ही निशाना चुप रहो ।।

हम तुम्हारी पढ़ चुके फ़ितरत मियाँ ।

अब मुझे अपना बनाना चुप रहो ।।

हक़ हमारा छीन कर तुम ले गए ।

और अब हमको लुभाना चुप रहो ।।

हम गरीबों का उड़ाया है मज़ाक ।

हाले दिल पर मुस्कुराना चुप रहो ।।

इन्तकामी हौसला मेरा भी है ।

धूल तुमको है चटाना चुप रहो ।।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी 

मौलिक अप्रकाशित

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 16, 2019 at 6:32pm

आ0 महेंद्र कुमार साहब तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 16, 2019 at 6:32pm

आ0 रवि शुक्ला सर सहमत हूँ आपकी बात से । बन्दूक के स्थान पर हथियार शब्द कैसा रहेगा ।

Comment by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 11:10am

आदरणीय नवीन मणि जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Ravi Shukla on January 14, 2019 at 10:51am

आदरणीय नवीन मणि जी गजल का प्रयास अच्छा हुआ है समर साहब ने इशारा कर दिया है सातवें शेर में दे दी नादान को बंदूक जब वाक्य विन्यास के अनुसार ऐसा होना चाहिए दे दिया बंदूक कुछ असहज लग रहा है 

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 11, 2019 at 12:51am

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 11, 2019 at 12:50am

आ0 सुशील शरण साहब हार्दिक आभार। 

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 11, 2019 at 12:50am

आ0 गुरुदेव कबीर सर सादर नमन । आपकी इस्लाह से पूर्णतया सहमत हूँ । बिल्कुल सच कहा आपने रदीफ़ के साथ बिल्कुल इंसाफ नहीं कर सका मैं । आगे इस पर विशेष ध्यान रखूंगा । हार्दिक आभार के साथ नमन।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 9, 2019 at 1:35pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। बहुत सुंदर गज़ल।

Comment by Samar kabeer on January 9, 2019 at 11:34am

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,मतला और दूसरा शैर छोड़कर किसी शैर में भी रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हो सका,इस पर विचार करें ।

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2019 at 7:55pm

मांगते हो मेहनताना चुप रहो ।।वाह आदरणीय नवीन जी। .... एक यथार्थ को आपने बहुत ख़ूबसूरती से ग़ज़ल में उतारा है। ... दिल मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service