आदरणीय साथिओ,
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इस उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आदरणीय सुरेन्द्र जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी बेहतरीन लघुकथा..।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय कनक हरलालका जी. हार्दिक आभार. सादर.
आदरनीय मुहेंद्र जी, बहुत ही कमाल की लघुकथा के लिए बधाई कुबूल करें ।
हृदय से आभारी हूँ आदरणीय मोहन बेगोवाल जी. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
राजकपूर की इसी नाम वाली फिल्म की ही कहानी कह दी है आपने तो आदरणीय महेन्द्र जी
क्षमा चाहूँगा आदरणीया प्रतिभा जी। फ़िल्म से सिर्फ़ कहानी की थीम ली है। बाकी पूरी कहानी अलग है। वैसे इस बिन्दु पर आदरणीय योगराज सर के विचार भी जानना चाहूँगा। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। सादर आभार।
इस लघुकथा के पार्श्व में भले ही उस फिल्म की कहानी लगती हो, लेकिन ट्रीटमेंट और प्रस्तुति एकदम भिन्न हैI कथा के मध्य में दिया गया कल्पनाशीलता का पुट लिए सारा विवरण (मेरी और डेविड के बीच संवाद, मरीना का ख़त जलाना और मीनू का राजू को पहचानने से ही इंकार कर देना) फिल्म से एकदम अलग हैI और फिर अंत में राजू जोकर की मौत, यह सब भाई महेंद्र कुमार जी की कल्पना शक्ति का प्रमाण हैंI यही चीज़ें इस लघुकथा को विशिष्ट बनाती हैंI
त्वरित प्रत्युत्तर एवं अनुमोदन हेतु हृदय से आभारी हूँ सर. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.
बेहद मार्मिक दुखांत ,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा,आदरणीय महेंद्र सरजी।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया बबिता जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.
बेहतरीन लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय महेंद्र जी , सादर
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