आदरणीय साथिओ,
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अदरणीय योगराज प्रभाकर जी,
बहुत ही ख़ूबसूरती से आपने तराशा है
आपकी नज़र-ए-इनायत के लिए तहे दिल से शुक्रिया
रचना बहुत ही बढ़िया हार्दिक बधाई आदरणीय गुरुजी व रचनाकार महोदय
जनाब सलीम रज़ा साहिब आ दाब , वाह वाह, प्रदत्त विषय पर क्या खूबसूरत लघुकथा हुई है , शायरी के क़लम का रुख लघुकथा की तरफ़ करना अच्छा लगा, इस नई विधा का आगाज़ बहुत बहुत मुबारक हो l
मोहतरम तस्दीक़ साहब,
आपकी मोहब्बत और हौसला अफज़ाई के लिए बेहद ममनून ओ मशक़ूर हूँ,
वर्तमान के नौकरीपेशा व्याक्ति की जद्दो-जहद को दर्शाती है रचना. रचना की खूबसरती है ये सलीम साहब कि रचना समस्या के हल को रखने की भी कोशिश करती है, इस विषयाधारित सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई सलीम रजा साहब,
अदरणीय वीरेंद्र जी,
आपको लघुकथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ, बहुत बहुत शुक्रिया
प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया रचना, आजकल के माहौल को बखूबी बयां करती है आपकी यह रचना. बहुत बहुत बधाई आपको आ सलीम राजा रेवा साहब
हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रेज़ा रीवा जी।बेहतरीन लघुकथा।अपना खुद का कारोबार हो तो उसका कोई जवाब ही नहीं।नौकरी तो केवल मजबूरी में की जाती है।
आदरणीय विनय कुमार जी,,
बहुत शुक्रिया आपकी पुरखुलूस मोहब्बत का,
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सलीम सरजी।
प्रेरणा
खुद कमा कर पढ़ाई करने वाले एक छात्र की सिफारिश करते हुए कमलेश ने कहा, '' यार कमलेश ! तू उस छात्र की मदद कर दें. वह पढ़ने में बहुत होशियार है. डॉक्टर बन कर लोगों की सेवा करना चाहता है.''
'' ठीक है मैं उस की मदद कर दूंगा. उस से कहना कि मेरी नई नियुक्त संस्था से शिक्षाऋण का फार्म भर कर ऋण प्राप्त कर लें .'' योगेश ने कहा तो कमलेश बोला, '' मगर, मैं चाहता हूं कि तू उस की निस्वार्थ सेवा करें. उसे सीधे अपने नाम से पैसा दान दें. ''
'' नहीं यार ! मैं ऐसा नहीं करना चाहता हूं ?'' यौगेश ने कहा तो कमलेश बोला, '' इस से तेरा नाम होगा ! लोग तूझे जिंदगीभर याद रखेंगे.''
''हाँ यार. तू बात तो ठीक कहता है. मगर, मैं नहीं चाहता हूं कि उस छात्र की मेहनत कर के पढ़ने की जो प्रेरणा है वह खत्म हो जाए.''
'' मैं उसे जानता हूं, वह बहुत मेहनती है. वह ऐसा नहीं करेगा, '' कमलेश ने कुछ ओर कहना चाहा मगर, यौगेश ने हाथ ऊंचा कर के उसे रोक दिया.
'' भाई कमलेश ! यह उस के हित में है कि वह मेहनत कर के पढाई करें ,'' कह कर यौगेश ने अपनी आंख में आए आंसू को पौंछ लिए ,'' तुम्हें तो पता है कि दूध का जला छाछ भी फूंक—फूंक कर पीता है.''
यह सच्चाई सुन कर कमलेश चुप हो गया.
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(मौलिक और अप्रकाशित)
अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय जी ।
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