साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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आ० सुर्ख़ाब बशर जी, आपका हार्दिक धन्यवाद
दोस्ती में परत जो होती है
यार मेरा दिखा गया है मुझे
तुम सियासत के चोंचले रक्खो
खेल का ढंग आ गया है मुझे
जब कि मेरा ही नाम चलता है
फ़ासले पर रखा गया है मुझे
आदरणीय सौरभ सर शानदार प्रभावी प्रस्तुति के लिए ढेरों मुबारकबाद .......
बाकी लोगों ने जो शिकायत रखी है ये उनकी मोहब्बत है मै भी उनसे सहमत हूँ ...
आपकी गज़ल और रचनाओं मे इस्लाह के हम सब मुंतज़िर हैं .......
100 वें संस्करण मे बहुत से पुराने लोगों को दोबारा देख कर मुसररत हो रही है ....
ऐसी उम्मीद है ये संस्करण 1000 वें अंक तक पहुँचे और ओ बी ओ के सदस्यों का कारवाँ दिन ब दिन बढ़ता चला जाए.....
आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय नादिर भाई. आपकी यह इज़्ज़तआफ़ज़ाई है.
इधर की व्यस्तताएँ इतने बेतुके ढ़ंग से बढ़ गयी हैं कि हम ओबीओ पर चाहते हुए भी आ नहीं पाते. इसका घाटा मुझे ही होता है.
आपको मेरा कहा पसंद आया, यह मेरे लिए भी बहुत गर्व की बात है.
शुभ-शुभ
आदरणीय सर जी आदाब ,
उम्दा ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक बाद पैश करता हूं
तमाम अशआर ही क़ाबिल ए सद सताइश हैं लेकिन फिर भी मतले के लिए अलग से दाद पैश ना करूं तो मुझे सुकून नहीं मिलेगा वाह वाह
आदरणीय मिर्ज़ा जावेद बेग भाई, आप जैसे गुण-ग्राहकों से अपनी किसी कोशिश पर खुली शाबासी पाना मेरे लिए गर्व की बात होती है।
आपको अश'आर भले लगे, लिखना सफल हो गया।
आपका हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय सौरभ जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. 'चोंचले' जैसे आम जबान के शब्द को बहुत ख़ूब खपाया है आपने. हार्दिक बधाई
आदरणीय अजय जी, आपसे मिली प्रशंसा मेरे प्रयास को सतत बनाये रखे। आपका हार्दिक धन्यवाद।
//छोड़ कर तू.. चला गया है मुझे
सबसे कहना ये भा गया है मुझे// इस जिंदादिली को सलाम है साहिब.
//क्या हुआ वो निभा नहीं पाया
सब्र करना तो आ गया है मुझे// बहुत कसी हुई गिरह लगी है, वाह.
//दोस्ती में परत जो होती है
यार मेरा दिखा गया है मुझे// बहुत ख़ूब.
//तुम सियासत के चोंचले रक्खो
खेल का ढंग आ गया है मुझे// वाह वाह वाह.
//जब कि मेरा ही नाम चलता है
फ़ासले पर रखा गया है मुझे // अय हय हय, ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब.
//जब जगत में न भान हो जग का
वो अवस्था बता गया है मुझे// सूफियाना शेअर सीधे दिल में उतर रहा है.
//रौशनी की छुअन से सहला कर
चाँद फिर से जगा गया है मुझे// इस मुलायमियत के सदके हुज़ूर.
//अह ! लगा.. वो अभी-अभी ग़ुज़रा
या, कि माज़ी भिगा गया है मुझे// इस शेअर पर डबल वाह-वाह
//जुगनुओं से अँधेरे जलते हैं
बोल कर ये छला गया है मुझे // बहुत खूब.
इस मुकम्मिल कलाम पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० सौरभ भाई जी.
अदरणीय योगराज भाईजी,
आपका शेर-दर-शेर अपने भाव अभिव्यक्त करना इस ग़ज़ल को अर्थवान बना रहा है. आपका सादर धन्यवाद
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ जी ...ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है...आपबीती को जगबीती बनाना कोई आपसे सीखे...बहुत खूब...दाद कबूल कीजिये|
राणा भाई, ये दाद है या उलाहना ?
ऐसी भी टिप्पणियाँ होती हैं कि दिल थामे मज़ा लेना पडता है.
ये तो दाद खाज ..सब कुछ है ....अब गुरुदेव ने छोड़ा है क्या ? कुछ कहने के लिए .....आप दिल थाम के मज़े लीजिये ...हम दिल खोल के मज़े ले रहे हैं|
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