परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 102वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब फ़ानी बदायूनी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"उन के कानों तक न पहुँचा और फ़साना बन गया"
2122 2122 2122 212
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
(बह्र: बह्र-ए-रमल मुसम्मन महजूफ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 दिसंबर शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 29 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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शे'र दर शे'र दिली मुबारकबाद आदरणीय अनीस शेख जी ।
बहुत बहुत शुक्रिया आरिफ भाई
आद0 मोहम्मद अनीस जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल पर मेरी दिली मुबारकबाद कुबुल फरमाएं
शुक्रिया सुरेंद्र नाथ जी
अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय अनीस शैख़ जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
शुक्रिया महेन्द्र जी
आदरणीय मुहम्मद अनिस जी, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें. सादर.
शुक्रिया राज नवादवी साहब
[12/23, 11:14 AM] Samar Kabeer S.: मुलाक़ात करें ।
[12/24, 7:35 PM] surkhabbashar232: इक मकाँ पक्की सड़क पर क्या हमारा बन गया
दोस्तो, दुशमन उसी दिन से ज़माना बन गया
मैं तो पीतल था मेरी क़ीमत यहाँ कुछ भी न थी
आपने अपना लिया तो मैं भी सोना बन गया
कैमरे में कै़द करते जा रहे थे यार सब
उनकी नज़रों में मिरा मरना
तमाशा बन गया
" वाक़िआ अपना सदाक़त से मुज़य्यन था मगर"
उनके कानों तक न पहुँचा उर फसाना बन गया सर
बर्फ़ का कुहसार था सुरख़ाब मेरी आँख में
उसके ग़म की धूप चमकी तो ये दरिया बन गया
वाह।
बहुत उम्दा अशआर। बधाई
जनाब अजय गुप्ता जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका
बहुत बधाई आदरणीय surkhab bashar जी । उम्दा ग़ज़ल हुई
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