आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 107 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-108
विषय - "जल जीवन जलजला"
आयोजन की अवधि- 12 अक्टूबर 2019, दिन शनिवार से 13 सितम्बर 2019, दिन रविवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 12 अक्टूबर 2019, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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आ. भाई शेखशहजाद जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
वाह ...बहुत सुन्दर सार्थक सृजन कहीं कटाक्ष करता कहीं आगाह करता।हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद जी
पानी तेरी अजब कहानी ,महिमा अपरम्पार।
पानी के ही इर्दगिर्द है ,नाचे यह संसार।
पानी से ही जीवित रहते ,जीव जंतु या झाड़ ।
कम हो तो सूखा कहलाता ,अधिक हुआ तो बाढ़।
ढुलक गया तो आँसू बनता ,सूख गया तो शर्म।
प्यास मिटाई प्यासे की तो,खूब कमाया धर्म।
कहने को पानी है लेकिन ,अलग अलग हैं रूप।
खारा है तो विस्तृत सागर,मीठा गहरा कूप ।
ऊँचाई से गिरकर झरना ,बहती नदिया धार।
तपकर भाप बने उड़ जाए ,नील गगन के पार।
कठिन परिश्रम से बन बहता ,मानव तन से स्वेद।
नन्हीं बूँदें कभी ओस की ,सब पानी के भेद।
एक तिहाई धरती बाकी ,सृष्टि व्याप्त है नीर।
प्रेम कुलाँचे भरता अक्सर ,नदी तलैया तीर।
कृषक देख हर्षाता जब जब ,रिमझिम पड़े फुहार ।
रूठे घन तो इंद्र देव की ,लगती करुण गुहार।
बिन पानी के मीन तड़पकर ,त्यागे पल में प्राण।
अगर अधिक हो पानी ढूंढें ,पशु विकल हो त्राण।
पानी की गरिमा को जानो ,नहीं बहाओ व्यर्थ।
है अमूल्य उपहार सृष्टि का ,जानो इसका अर्थ।
स्वाति नखत की बूँद को व्याकुल , *सीप* हृदय में आस।
सफल साधना हो मिट जाये ,जीवन भर की प्यास ।
'मौलिक व अप्रकाशित'
आदाब। 16-11 मात्रा मय बेहतरीन शिल्पबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया सुनन्दा झा साहिबा। सबसे ऊपर आपने रचना की विधा/छंद का संकेत नहीं दिया है। कौन सा छंद है?
हृदयतल से आभार आदरणीय ,यह 16,11 मात्राओं वाला सरसी छन्द है सादर ।
शुक्रिया आदरणीया जी।
मुहतरमा सुनन्दा झा साहिब: आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
पानी से ही जीवित रहते ,जीव जंतु या झाड़ ।
कम हो तो सूखा कहलाता ,अधिक हुआ तो बाढ़।'
इस पद में तुकांतता सहीह नहीं है,देखियेगा ।
उत्साहवर्धन के लिए हृदयतल से आभार आदरणीय ,प्रयास करुँगी उत्तम तुकांत लिखने की ।
ढुलक गया तो आँसू बनता ,सूख गया तो शर्म।
प्यास मिटाई प्यासे की तो,खूब कमाया धर्म।// वाह सुन्दर भाव। हार्दिक बधाई आदरणीया सुनन्दा झा जी प्रदत्त विषय पर सुन्दर सृजन के लिये।
उत्साह वर्धन के लिए हृदयतल से आभार आदरणीया ।
दोहे
जीवन जल को मानता, यह पूरा संसार।
जल थल जब हो एक-सा, जीवन जाता हार।।
जिसकी आँखों का मरा, पानी सुन लो तात।
पानी-पानी हो वही, जब जाने औक़ात।।
जल-जल जल चिल्ला रहा, जन-जन अब हर ओर।
कहीं ख़ुश्कती सांस हैं, कहीं उन्हीं पर ज़ोर।।
अनुशासित जल जिंदगी, मारक है बिन ओट।
कुछ मानुस के काज से, कुछ कुदरत का खोट।।
बादल के तन में बसे, आर्द्र वायु के श्वास।
पादप-कीड़े-जानवर, सबकी जल से आस।।
मौलिक अप्रकाशित
जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी आदाब,प्रदत्त विषय पर अच्छे दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'कहीं ख़ुश्कती सांस हैं, कहीं उन्हीं पर ज़ोर।'
इस पंक्ति में ' ख़ुश्कती' शब्द किस भाषा का है,और इसका
अर्थ क्या है,बताने का कष्ट करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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