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देशप्रेम का भाव रोपित हुआ है यहां कथा में और प्रवाह भी बहुत सही है। कथानक जरा एस्ट्रोनटस् के जीवन से जुडी हुई थी इसलिए 'अनआईडिंफाईड आबजेक्ट' के अस्तित्व को हमारे मन ने सुलझाने में वक़्त लिया है।
लास्ट पैरा से स्वयं को जोड़ने के लिए ये पंक्ति बार -बार पढ़ी कि ---
// किसी भी क्षण, किसी भी 'पार्टिकल' से टकराते ही इसका अनगिनीत टूकड़ो मेँ बिखर जाना तय है। लेकिन मुझे अपना ये अंत स्वीकार नही है। इसलिये.... इसलिए मैं अपने देश के गौरव के साथ इस यान को छोड़ रहा हूँ, 'अलविदा' हिन्दुस्तान !"..//--------- लेकिन अंतरिक्ष के यान में ही रहते और वो बिखरते तो भी देश के लिए ही स्वयं की आहुति देते।
अंतरिक्ष में यान छोड़ने में उनकी बॉडी तो, वहीं कहीं किसी आकाश- गंगा में रह गयी होगी , तो यहां शरीर पर तिरंगा कैसे ?
वैसे कथा लाज़वाब है। ! बधाई आपको इस नए विषय पर कलम आज़माने के लिए आदरणीय वीर जी।
प्रिय वीरेंद्र जी , वैज्ञानिक कहानियां तो लम्बे समय से लिखी जा रही हैं , मगर लघुकथा आपकी नज़र आई। मेरे लिए तो यह आपकी बहुत बड़ी उपलब्धि है। अन्यथा लघुकथाएँ प्रेम ,सेक्स और गरीबी के चारों तरफ घूमती रहती हैं। इस नूतन प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें , जिसमे विज्ञानं के साथ देशभक्ति का सुंदर मिश्रण हुआ है। भविष्य के लिए भी शुभकामनाएं।
वाह ! आदरणीय वीर जी , आपसे आग्रह है की आप इस पंक्ति को इस कथा में स्पष्टता से इसी प्रकार रोपित कीजिये, देखिये तो , ये कितना सुखद है पढ़ना कि ,-----// तिरंगे को शरीर पर लपेट यान से बाहर अनंत खुले अंतरिक्ष में निकल रहा है जहा के लिए वो जानता है कि वो सदा एक पार्टिकल की तरह वो हमेशा अंतरिक्ष में विधमान रहेगा। //-----आह ! अद्भुत वाक्य सम्प्रेषित हुआ है यहाँ। इसको संशोधन कीजियेगा जरूर। सादर।
आदरणीय वीरेंदर जी बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है. हार्दिक बधाई
एक अलग ही विषय पर देश भक्ति के रंग को उकेरती हुई लघु कथा बहुत उम्दा हुई दिल से बधाई आपको आ० वीरेंद्र वीर मेहता जी .
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