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आप सभी का प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से आभार । आप सब की उपस्तिथि हमारी हौसलाअफजाई करती हैं....शुक्रिया पुनः सअभी का
समाज सेवा के नाम पर गोरखधंधा ही चल रहा है, लेकिन इनकी वजह से कुछ अच्छे NGOs भी नुकसान उठा लेते हैं| मेरा मानना है कि धन से चमत्कृत व्यक्ति को समाज सेवा के क्षेत्र में जाना ही नहीं चाहिए, इससे तो उसकी पत्नी ठीक है, जो शिक्षा प्रदान कर मेहनत की कमाई कर रही है| धन के लिए बदलते रंगों को दर्शाती इस रचना हेतु सादर बधाई प्रेषित है|
दिखावा ही है आजकल, असली मायने तो रह ही नहीं गए दुनियां में| बहुत अच्छी रचना विषय पर, बधाई आपको
गाढ़ा रंग भी समय के साथ कैसे धुंधला जाते हैं आपकी लघुकथा में स्पष्ट दीखता है, अच्छी लघुकथा हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया सविता मिश्रा जी.
बहुत बहुत आभार अआप सभी का हमारा मआर्गदर्शन करने के लिए।
अच्छी लघुकथा हुई है. हार्दिक शुभकामनाएँ
दलदल
( रंग विषय आधारित )
विभु की दिन प्रति दिन बढ़ती शैतानी की आज तो हद ही हो गयी थी।विभु ने गुस्से मे अपनी छोटी बहन को अलमारी मे बन्द कर दिया था ।वो तो समय पर पता लग गया निशा को। वरना ना जाने क्या हो जाता आज। मन ही मन ठान लिया था।विभु की माँ निशा ने आज तो कड़ी सजा देनी ही हैं। गुस्सा औऱ कुछ गलत होने के डर ने कस कर पिटाई करवा दी फिर तो निशा सें विभु की।विभु तो सो गया रोते रोते पर अब उसके गालों पर अपनी उँगलियों के निशान देख तड़प उठी थी निशा। गुस्से पर ममता का रंग भारी पड़ने लगा था।
"कितनी गन्दी मां हूँ ,क्या कोई इतनी बुरी तरीके से मारता हैं अपने बच्चे को " दिल तड़प कर बोला निशा का ,
"अरे गलती पर ही तो दी थी सजा पर फिर क्यों पश्चाताप कर रही हो ।"
अब दिमाग भी वकालत पर उतर आया निशा का। कभी प्यार का रंग आ रहा था तो कभी गलत और सही का। सारे रंगो के इन्द्र धनुष मे उलझ गयी थी निशा।अचानक अपने गुरु की बहुत पुरानी बात याद आ गई निशा को ,
"अपने हाथों से अपना आपरेशन करना आसान नहीं होता।पर इसका यह मतलब नहीं कि जख्मों को नासूर बनने दिया जायें ।"
और फिर मुस्कुरा कर विभु के बालों को प्यार से सहला कर आत्मग्लानी के दलदल से बाहर आ गयी थी निशा।
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
आदरणीया नेहा जी, ममता के रंग दिखाती बहुत ही प्यारी लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
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