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दुनिया किराये के फ्लैट में। झुकी हुई डाली अलग न हो जाए,अतः सींचता रहा पर वह सीधी न हुई ।हाँ उसमें जडें निकल आई,और छोड दिया पुराने खोखले तने को । दो परिंदे आये और बस गए फुलवारी के सामने।// बहुत मार्मिक बनी हैं ये पंक्तियाँ , हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर आपको आदरणीय पवन जैन जी
"
* सखा * ( साथी )
" सुमि ! एक साल की ही तो बात है। पलक झपकते ही दिन फुर्र हो जायेंगें। इस तरह उदास रहोगी तो मेरा दिल अमेरिका में कैसे लगेगा।"
"आप नहीं समझोगे, पूरा घर आपके बिना सूना हो जायेगा।"
" अब तुम्हें ही घर ,माँ और पापा की देखभाल करनी है।और तुम ये अच्छे से कर सकती हो,मुझसे बेहतर ये बात और कौन समझ सकता है।"
" वो तो लूँगी पर ...।"
" पर क्या ? मुझे तुम पर पूरा विश्वास है । अगर कोई मुश्किल हो तो विनीत हैं न, मैंने उससे कह दिया है।"
" क्या विनीत ! पर आपके पीछे मैं उसकी मदद नहीं ले सकती।"
" क्यों नहीं ले सकती ? वह तुम्हारे बचपन का सखा है।"
"बचपन का सखा ?आप क्यूँ नहीं समझते कि ये द्वापर नहीं कलयुग है।"
मौलिक एवम् अप्रकाशित
ये द्वापर नहीं कलयुग है। सही कहा आपने | बधाई बढ़िया कथा
एक अनजानी सच्चाई जिसे सब नजर अंदाज कर जाते है. सुंदर रचना आदरणीय जानकी वही जी .
बहुत सुंदर ,बहुत कम शब्दों में एक सटीक कथा ।बधाई आदरणीय।
सही कहा आपने , द्वापर नही कलियुग है | सुंदर पंच पंक्ति | बधाई आ. जानकी जी
मोहतरमा जानकी साहिबा , सीख देती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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