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जनाब सतविंदर कुमार साहिब , ज़ात पात पर कटाछ करती अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
वाह सतविन्द्र भाई ! जन-जीवन में व्याप्त आन्तरिक विकृतियों व छल-छद्म को बहुत ही सशक्त ढंग से पेश किया गया है। लघुकथा में निरावरण यथार्थ व गंभीरता का पैनापन एक चुभन देता हुआ पाठकीय संवेदना पर अमिट प्रभाव डालने में सफल रहा है। इस प्रभावशाली लघुकथा के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं !
आदरणीय सतविन्द्र जी, समसामयिक विषय पर मनोविश्लेषण करती बढ़िया लघुकथा लिखी है. बिना किसी आरोपण के घटना और उस माहौल को जस का तस लघुकथा में ढालकर आपने बहुत प्रभावकारी प्रस्तुति दी है जो सीधे कोई सन्देश नहीं देती लेकिन जिसमें सन्देश ही निहित नहीं है अपितु पाठक को सोचने के लिए भी विवश करती है कि ये कितना सही है. बधाई इस जीवंत प्रस्तुति के लिए. आदरणीय योगराज सर के शब्दों में कहा जाए तो आपने हॉस्पिटल का रास्ता दिखा दिया, खुद सर्जरी करने की बजाय...... क्योकि आप डॉक्टर या सर्जन नहीं है.
बहुत बहुत बधाई
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