Tags:
Replies are closed for this discussion.
//ये लहू देके ,शहीदों ने चमन सींचा था,
आओ उस खून की अब लाज बचाई जाये.//
हरेक देशवासी का यही धर्म बनता है ! यह शेअर भी बहुत बढ़िया है इमरान जी !
//हद-ए-ज़वाल की सरहद से हम आगे ही सही,
आओ, के घर लौटके तारीख बनाई जाये.//
वाह वाह वाह ! जो हो गया उसको भूल कर नई शुरुयात करने का यह संदेश दिल को छू गया इमरान जी !
//न हो सग़ीर अमल न फसाद-ए-रद्द-ए-अमल,
आओ, इल्ज़ामात की तहरीर मिटाई जाये.//
बेहतरीन, बाकमाल और बेमिसाल ख्याल !
//हर शो'बे पे ये माना के हमें हार मिली,
जीत की, झूटी ही सही, आस जगाई जाये.//
आपकी इस आशावादिता को नमन है भाई - बहुत खूब !
//इन्तेखाबात की ताक़त तो अभी हाथ में है,
आओ सच्चाई पे ही चाप लगाई जाये.//
मताधिकार आज भी आम जनता के हाथ में बहुत बड़ी ताक़त है जो किसी भी हुकूमत का पुरअम्न तरीके से तख्ता पलट सकती है ! इसी की ओर इशारा करता हुआ आपका यह शेअर भी बहुत खूबसूरत है ! दूसरे मिसरे में लफ्ज़ "चाप" है या कि छाप - ज़रा वजाहत फरमाएं !
//लाल परचम न लहू लाल बहाने के लिये,
आओ भूलों को यही बात बताई जाये.//
भाई क्या हुब्बल-वतनी है और क्या बाकमाल ज़बरदस्त संदेश है इस शेअर में ! बहुत दुरुस्त फ़रमाया, झंडा चाहे लाल हो या किसी और रंग का - वो किसी का खून बहाने का हक नहीं देता ! राष्ट्र की मुख्य धारा से दूर हो चुके भटके हुओं के लिए इस से सार्थक और कोई संदेश नहीं हो सकता !
//के आज, गुलज़ार में फिर प्यार की बयार चले,
आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाये//
वाह वाह वाह - बहुत सुन्दर गिरह लगाई है !
//बढ़ गई है म'ईशत में उजालों की कमी,
'इमरान', हर दर पे शमाँ, आज चलाई जायेँ.//
बेहतरीन मक्ता - बेहतरीन संदेश ! सेकुलरिज्म और हुब्बल वतनी की चाशनी से सराबोर इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें इमरान जी !
मोहतरम योगराज साहब जी!
आप तो मेरे उस्ताद हैं और उस्ताद किसी ग़ज़ल के लिए दाद दे, इससे बढ़कर तो और क्या ख़ुशी हो सकती है भला .....
अब गहराई से मुताला करने पर मुझे लगता है 'चाप' की जगह 'छाप' होना चाहिए....
//इन्तेखाबात की ताक़त तो अभी हाथ में है,
आओ सच्चाई पे ही छाप लगाई जाये//
admin साहब से दरख्वास्त है ---
बराए मेहरबानी 'भूलो' की जगह 'भूलों' और 'चाप' की जगह 'छाप कर' दीजियेगा ...
//लाल परचम न लहू लाल बहाने के लिये,
आओ भूलों को यही बात बताई जाये//
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |