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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-122

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 122वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  इकबाल  साजिद साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"बचपन का दौर फिर से जवानी में आएगा "

221     2121      1221          212

मफ़ऊलु        फाईलातु        मफ़ाईलु       फ़ाइलुन

(बह्र:  मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ  )

रदीफ़ :- में आयेगा।
काफिया :- आनी( कहानी, निशानी, रवानी, पानी, सानी  आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 अगस्त दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 29 अगस्त  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीया  डिंपल शर्मा जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई 

आदरणीय दण्डपाणि'नाहक'जी नमस्ते, ग़ज़ल तक आने के लिए और हौसला अफजाई के लिए हृदय तल से आभार आपका आदरणीय।

आदरणीया  डिम्पल शर्मा जी बहुत खूब, अच्छे शेर कहे हैं| सैलाब-अश्क को सैलाब -ए- अश्क या सैलाबे अश्क लिखा जाना चाहिए| अंतिम दो शेर और समय देने से निखारे जा सकते हैं| हार्दिक शुभकामनायें|

आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी नमस्ते, ग़ज़ल तक आने के लिए हृदय तल से आभार आपका आदरणीय ,जी आदरणीय।

डिम्पल जी अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद आपको।सैलाबे अश्क़ करना सही होगा।गिरह के शेर में इश्क़ के समय बचपन का दौर आएगा ये कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा।इसमें सुधार की गुंजाइश लग रही है।बाकी ग़ज़ल उम्दा हुई।

आदरणीया राजेश कुमारी जी नमस्ते, बहुत शुक्रिया आपका आदरणीया ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति मायने रखती है,जी मैं कोशिश करूंगी कुछ सुधार करने की ।

आद0 डिंपल शर्मा जी सादर अभिवादन। तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह'कुशक्षत्रप'जी नमस्कार, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हौसला बढ़ाती है कृप्या दृष्टि बनाए रखें, बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय।

जब ज़िक्र ए माज़ी मेरी कहानी में आएगा
सागर सिमट के आँख के पानी में आएगा

बह जाएगी ये बज़्म उसी रौ में, देखना!
जब भी मेरा कलाम रवानी में आएगा

तुम पर गिरां न गुजरे ये नाला ए दिल कहीं
यह हश्र की अब एक निशानी में आएगा

वो मुड़ गया था जानिब ए मक्तब इस आस में
बचपन का दौर फिर से जवानी में आएगा

अब लगता है हमें, कि अबस ही बड़े हुए
तब सोचते थे लुत्फ़ जवानी में आएगा

अल्फाज़ में उतर के ज़रा दास्ताँ में आ
मौज़ूअ तब खुलेगा, मआनी में आएगा

सैलाब साथ लाएगा जज़्बात का ‘शकूर’
वो जो परिंदा नक्ल ए मकानी में आएगा

-मौलिक व अप्रकाशित

गिरां – भारी, नाला – आर्तनाद, मक्तब – पाठशाला, अबस – व्यर्थ, मौजूअ – विषय, मआनी – अर्थ(बहुवचन), नक्ल ए मकानी – प्रवास

शकूर साहब बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई . मतला बड़ा ख़ूबसूरत हैं ...वाह ! 

बहुत शुक्रिया आदरणीय अनिल कुमार सिंह सर,

जनाब शिज्जु शकूर जी आदाब, बहुत समय बाद ओबीओ के तरही मुशाइर: में आपको देख कर प्रसन्न्ता हुई ।

तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।

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