आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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वहुत बहुत आभार आदरणीय
वाह ! बहुत सुंदर कथा कही है अपने आदरणीय विनय सर| बधाई स्वीकारें |
वहुत बहुत आभार आदरणीय
विषय के अनुसार सार्थक और संदेशप्रद लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें, आदरणीय विनय कुमार जी सर| सच है तमाशबीन न होने पर अंदर काफी संतुष्टि मिलती है|
वहुत बहुत आभार आदरणीय
तमाशा
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बीच चौराहे पर एक नट डुग -डुगी बजाकर लोगों को इकठ्ठा कर रहा था। इसने दो लकड़ी के खम्बों के बीच कुछ दूरी पर एक रस्सी बाँध रखी थी। जब लोग इकट्ठा हो गए तो उसने अपने दस साल के लड़के के हाथ में एक लकड़ी पकड़ा कर चलने को कहा। लड़का उस लकड़ी को आड़ी पकड़ कर होले -होले अपना सन्तुलन बना कर आगे बढ़ रहा था। तमाशबीन उस लड़के के इस कारनामे को बड़ी हैरत से देख रहे थे। नट की डुग -डुगी जारी थी। वो अपना कासा लेकर तमाशबीनों के पास गोल -गोल घूम रहा था। लोग बतौर नज़राना कुछ रूपये -पैसे डाल रहे थे। दरअसल नट और उसका लड़का इस तरह करतब दिखा कर अपने परिवार का पेट पाल रहे थे।
नट के तमाशे में अर्थ शास्त्र , वाह बधाई आदरणीय सुंदर कथा हेतु ।
हम भी तो उपरवाले की डोर पर चलते रहते हैं सही कहा आ० सिद्दकी जी अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई
आ० मुज़फ्फर इकबाल सिद्दीकी साहिब, लघुकथा कहने का सद्प्रयास हुआ है I लेकिन, यह प्रयास नाकाफी है, रचना अभी बहुत ज्यादा मेहनत मांग रही है I यहाँ बने रहें और प्रयासरत रहें, दिल्ली कोई ज्यादा दूर नहीं है I प्रतिभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारें.
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