परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 137वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब खुमार बाराबंकवी साहब की गजल से लिया गया है|
"ये कहाँ पहुँच गए हम तिरी बज़्म से निकल के "
1121 2122 1121 2122
फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन
बह्र: रमल मुसम्मन् मशकूल
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 नवंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 नवंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय रिचा यादव जी, बहुत अच्छी गज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय
बहुत शुक्रियः आपका
सादर
आदरणीया रिचा जी, एक सुझाव :
मक्ते का नाम या तखल्लुस की कोई मात्रा नहूं गिरायी जाती. यह मान्य नियम है...
शुभातिशुभ
आदरणीय दण्डपाणि नाहक जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय नाहक़ जी, नमस्कार
अच्छा प्रयास ग़ज़ल का, बधाई स्वीकार कीजिए।
मतले की लय बाधित है, ग़ज़ल बहुत जगह बेबह्र होती दिखी, देखियेगा।
सादर
नाहक जी मतले के ऊला पर नज़र ए सानी हो
आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिवादन। गजल का अच्छा प्रयास हुआ है। हार्दिक बधाई। भाई अनिल जी की बात से सहमत हूँ। मतले को यूँ करें तो अधिक उपयुक्त लगेगा-
कभी बोला था बिछड़ते मुझे उसने ये मचल के
हो नसीब दर न कोई मिरे कूचे से निकल के
जी, अब ठीक है।
आदरणीय दण्डपाणि नाहक जी, किसी शब्द के किस गुरु वर्ण को गिरा कर पढ़ा जा सकता है, इस समझ पर गौर फरमाइएगा. कई वर्ण नाहक गिराए गए हैं जो मान्य नहीं हैं.
शुभातिशुभ
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