आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी अंक-14 में आपका हार्दिक स्वागत हैI
” सच्चा प्रमाण-पत्र “
” तुम यहीं रूको मैं इसका मैडीकल बनवा कर अभी आता हूं । समझे? “ वह लड़की की बांह पकड़े खड़ा था ।
”मैं फिर पूछता हूं झूठे मैडीकल से कल को कोई चक्र तो नहीं पड़ेगा?“ नीली पगड़ी के माथे पर परेशानी की दो लकीरें खिंच आई थीं ।
” मूर्खता क्यों करते हो ? इतनी जान-पहचाम तो मेरी है ही कि तुम्हारा कुछ न बिगड़ने दूं ।“ कह कर उसने सहमी हुई लड़की को अन्दर धकेला था । फिर खुद भी अन्दर घुस कर उसने किवाड़ बन्द कर लिए । नीली पगड़ी बाहर बैठ कर हाथ मलने लगी ।
अन्दर स्टेथोस्कोप ने उठ कर हाथ मिलाते हुए कहा था ” कैसे दर्शन दिए, मेरे हुज़ूर ? “
खादी ने कुर्सी पर पसरते हुए कहा था ” इस लड़की का सर्टिफिकेट बना कर दे दो कि इसके साथ ज़्यादती हुई है । “
” क्या सचमुच ही ज्यादती हुई है ? “ स्टेथोस्कोप लालची निगाहों से घूरने लगा, लड़की को ।
” अरे नहीं यार । इसके बाप का केस अदालत में चल रहा है । विरोधी पक्ष को सात साल के लिए अन्दर करवाने का यही एक रास्ता बचा है जो मैंने सुझाया है । “ खादी ने ठहाका लगाया था ।
” पर, जब इसके साथ...“
” डरते क्यों हो, यार ? इलाके की खाकी तो मेरी जेब में है । “
” पर अदालत ने कहीं और से इसका चैक- अप करा लिया तो ? नकली सर्टिफिकेट के चक्कर में मैं तो अन्दर जाऊंगा ही, यह लड़की भी । “
” सच्चा प्रमाण-पत्र तो दे ही दोगे, न ? “
” क्यों नहीं ? उसमें क्या दिक्कत है ? “
खादी ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा था ” तो ठीक है, तुम प्रमाण-पत्र बनाना शुरू करो तब तक मैं...“
और लड़की यह सुन कर बेहोश हो गई थी ।
( मौलिक तथा अप्रकाशित )
आ.नील जी विषय को सार्थक करती संवादात्मक रचना के लिए बधाई आपको.
जी बेहद शुक्रिया , नयना जी।
बेहद शुक्रिया आदरणीया। अँधेरा इतना घिनौना ही होता है , लानत भेजने लायक।
शहजाद भाई , रचना को इतना अमूल्य समय दिया , विस्तृत टिप्पणी दे कर। बहुत बहुत धन्यवाद
शुक्रिया सुनील भाई , आप बिलकुल सही कह रहे हैं। क्लाइमैक्स तो वहीँ था बाद में कुछ कहने की जरूरत ही नहीं थी। इतना तो मैं भी समझता हूँ कि लघुकथा में एक भी फालतू वाक्य बहुत महंगा पड़ता है , भविष्य में ध्यान रखूंगा। यही दृष्टि बनाए रखिएगा।
आयोजन का शानदार आगाज़ करने हेतु बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय अग्रज । आपकी लघुकथा पर थोड़ी देर मे हाजि़र होता हूं। सादर
बेहद शुक्रिया रवि भाई। आपके लौट कर आने का इंतज़ार रहेगा। आप से उम्मीद है कि कथा का हर पहलू से निरीक्षण-परीक्षण करके इसमें सुधार की गुंजायश इंगित करेंगे। यहाँ दो-तीन गोष्ठियों में शामिल हो कर मैंने जाना है कि कमियां बताने वाले बिलकुल अपने होते हैं। यह दायित्व अब आप पर।
आदरनीय प्रदीप नील जी बहुत ही सुन्दर षडयंत्र को उदघाटित करती लघुकथा. बधाई .
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