आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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गजब की कथा हुई है आदरणीय प्रदीप नील वशिष्ठ जी. हार्दिक बधाई आपको..
तीक्ष्ण कथा से आगाज करने हेतु अनेकानेक बधाइयाँ आदरणीय प्रदीप नील वशिष्ठ जी।
इस प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद जैन साहब।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया सीमा जी।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया सीमा जी। यह फिर गलत थ्रेड में गया सीमा जी। कोई तकनीकी गड़बड़ है शायद
विषयानुरूप सार्थक एवं असर छोड़ती उम्दा रचना के लिए बधाई आदरणीय प्रदीप जी ..... दूसरे को गिराने के फेर में इंसान के सोचने समझने की शक्ति ख़त्म हो जाती है, वह खुद का भला बुरा भी नहीं समझ पाता। .. फिर ये कैसे समझ पाए कि असली दुश्मन वो नहीं जिसके लिए षड्यंत्र कर रहा है बल्कि वह है जिस पर आँख बंद किये भरोसा कर रहा है ।
इतनी बढ़िया विवेचना के लिए बेहद शुक्रिया खान साहिब। आपने सच कहा , सोलह आने सच।
” सच्चा प्रमाण-पत्र तो दे ही दोगे, न ? “ ------------ओह ! यथार्थ के परिदृश्य पर गढ़ी गयी ये लघुकथा मन को क्षुब्ध-सी कर गयी . लोकहितार्थ बनाए गए लगभग सभी विभाग भ्रष्टाचार के कीचड़ में गले तक डूब गए है . सत्य घटनाओं से प्रेरित आपकी ये लघुकथा बेहद तीक्ष्ण बनी है आदरणीय प्रदीप जी . आपने स्टेथस्कोप और खादी का प्रयोग जिस प्रकार प्रतीकात्मकता से किया है वो अचंभित करता है . मैं बेहद प्रभावित हुई हूँ आपकी कथा की इस शिल्प से . शुरू से लेकर अंत तक कथा का प्रवाह पाठक के मन को बांधे रखता है .मन को छटपटाने पर बाध्य करती ये लघुकथा वाकई में शानदार बनी है . ह्रदय से बधाई प्रेषित है .
इतनी तारीफ से गुरुर हो जाएगा , कांता जी। आप कथा मर्मज्ञ हैं , आप से इतना स्नेह पाना गोल्ड मेडल पाना :) बहुत बहुत धन्यवाद।
राजनीतिज्ञों ने अपनी छवि इतनी धूमिल कर दी है कि जब भी हम षड्यंत्र ,भ्रष्टाचार बेईमानी जैसे शब्द सुनते हैं तो इनको परिभाषित करने के लिए हमारी पहली पसंद ये ही होते हैं , दुःख होता है ये देख कर ..प्रदत्त विषय पर शानदार लघु कथा ,बधाई प्रेषित है
बहुत शुक्रिया आ प्रतिभा जी। आप बिलकुल सही कह रही हैं।
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