आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीया रीता जी, पौराणिक कथानक पर वर्तमान परिस्थियों का आरोपण पाठक को प्रभावित करता हुआ सा है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. विभीषण के रूप में पात्र का भाषण कथा को वाचाल कर रहा है. सादर
बधाई आदरणीया रीता जी ,पौराणिक विषयों पर लेखनी चलाना तलवार की धार पर चलने जैसा होता है .. किन्तु आपने बखूबी चलाई है. हार्दिक शुभकामनाएँ आपको..
//मुझे कुल नाशक सुनना मंजूर है पर "देश-द्रोही" कदापि नहीं//
सबसे अहम् देश, इसके लिए सबकुछ सुनना मंजूर, स्पष्ट सन्देश के साथ कही गयी बहुत ही सुन्दर लघुकथा, बहुत बहुत बधाई आदरणीया रीता गुप्ता जी.
आदरणीय रीटा जी प्रदत्त विषय को साकार करती इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीया आपकी रचना पर कल टिप्पणी दी थी , मगर नेट की गड़बड़ या किसी तकनीकी कारण से गलत थ्रेड में चली गई। आप मेरे लिए एक कष्ट कीजिए और उसे खोज कर एक निगाह अवश्य डालिए। मुझे मिली तो यहाँ कॉपी पेस्ट कर दूंगा।
सही है आज तक किसीने अपने बच्चे का नाम विभीषण नहीं रखा | बधाई स्वीकारे आदरणीया |
यह एक गलत अवधारणा है कि किसी माँ-बापने अपने बच्चे का नाम विभीषण नहीं रखा होगा. मेरे हैदराबाद ऑफिस में विभीषण मोहापात्रा नामका एक कर्मचारी था. यह भ्रांति विशेषकर एक उत्तर भारत के क्षेत्र विशेष में अधिक बनी हुई है.
जहाँ तक प्रस्तुति के कथानक और कथातत्त्व का सवाल है, अभी गुंजाइश है. लेकिन काफ़ी हद तक इन्हें साधने का अभ्यास किया है वैसे वैसे ये नितांत मेरे विचार है. सुधीजनों के निर्णय पर भरोसा कीजियेगा.
सादर
आदरणीय मनन कुमार जी लघुकथा बहुत ज्यादा विस्तृत हो गई.
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