आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीय सुश्री कांता रॉय जी, आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभार। अवश्य ही योगराज प्रभाकर सर , शेख शहज़ाद सर व प्रदीप सर सभी के मार्ग दर्शन पर कार्य कर भविष्य में अच्छा करने का प्रयास करुँगी। सादर।
सरकारी कार्यालय का अच्छा चित्र खींचा है आपने इस रचना में , बधाईप्रेषित है आदरणीय उषा जी
आदरणीय सुश्री प्रतिभा पांडेय जी, आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभार। सादर।
आदरणीया उषा जी प्रस्तुति एवं आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई. सादर
आदरणीय श्री प्रभाकर जी, आपके सुझावो पर अवश्य ध्यान दूंगी। आपका सादर धन्यवाद।
आदरणीय डॉ विजय सर , आपका ह्रदय से आभार। कुछ प्रयास सार्थक हुआ लगता है। धन्यवाद।
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, आपका ह्रदय से आभार। आपके सुझाव को सहर्ष स्वीकार करती हूँ। सादर।
षडयंत्र का भंडा फोड़
गाँव में एलेक्शन का बहुत बोल बाला चल रहा है | चाहे सरपंच के घर साथियों की भीड़ लगी रहती |
मगर गाँव में ये चर्चा भी आम थी कि पार्टी लीडर ने सरपंच के भाई को गुप्त संदेशा भेजा है कि सरपंच के विरोध में लामबंधी शुरू की जाये |
सुनेहे में ये कहा गया, “देख भाई, ये तो हमें पता है कि हम सरपंच से सरपंची तो जीत नहीं सकते, लेकिन उसका रहना मेरे लिए ठीक नहीं” |
गाँव में कुछ खास तरह की हिलजुल शुरू हो गई, और गुप्त मीटिंगें भी होने लगी |
सुनेहे में ये भी कहा गया,अगर तुम सरपंची न भी जीत सके,तो भी किसी तरीके से इतने मैंबर तो जिता दो ताकि गाँव में अपनी मर्जी से पंचायत चला सके” लीडर ने कहा था |
अचानक ही इस बात का खुलासा फिडू भलवान ने सरपंच के घर पीती में कर दिया “ कि सरपंचा इस बार लीडर ने तुझे जीतने नही देना” |
सरपंच को कभी पिछली इलेक्शन में ऐसा विरोध देखने को नहीं मिला |
सरपंच ने भी कुछ ऐसा किया जब आज नतीजा आया तो फिर से केवल सरपंची ही नहीं, पंचायत के सभी मैंबर उसके खड़ें किए ही जीत गए |
शाम को पार्टी लीडर ने पहले अकेले में अपने समर्थक से बात की “मीटिंग में उसने कहा भाई आप को जितना दिया , इतने तो लोग यहाँ भी नहीं”|
कुछ चिर के बाद पार्टी लीडर को मिलने के लिए सरपंच आ गया |
सरपंच को आते ही लीडर ने कहा, “सरपंचा मैं तो आप को हुन्झा फेर सरपंच ही कहूँगा” पर ये हुआ कैसे, लीडर ने फिर कहा |
लीडर साहिब मैनें तो कुछ भी नहीं किया , “ काम मेरे किए आप देख सकते हैं |
बस मैने तो बस यही कहा पिछली बार हमारे पार्टी प्रधान ने मेरे सर पर हाथ रखा , इस बार आप रख दो” ,सरपंच ने कहा |
मौलिक व अप्रकाशित"
कथा की बात तो बाद में आ० मोहन बेगोवाल जी, ये "सुनेहा", "चिर", "भलवान" और "हुन्झा फेर" जैसे शब्द कौन समझेगा?
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |