For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-146

विषय - "दिल का रिश्ता"

आयोजन अवधि- 17 दिसंबर 2022, दिन शनिवार से 18 दिसंबर 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 17 दिसंबर 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

Views: 918

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम

सादर अभिवादन।

गीत
-------
मन से मन का न कोई भी नाता जुड़ा
तन से तन के मिलन की चली रीत है।।
*
भाव आत्मिक न  लिखती कलम
जलेबी समौसा मिर्च तीखी सनम।।
सब की जुबाँ पर चढ़ा आज देखो
भोगवादी ने  जो  भी  रचा गीत है।।
*
कौन सोनी भला आज सोनी रही
कौन माही ने है प्रीत मन से गही।।
सुख से दुख से उसे वास्ता कुछ नहीं
तन को पाने को  केवल  बना मीत है।।
*
आज रिश्ता लहू का न मन में रहा
ध्यान सबका लगा सिर्फ धन में रहा।।
कैसे खेलेगा  सौहार्द्र  खुलकर भला
मन के आँगन में सब के बनी भीत है।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

वाह लक्ष्मण जी बहुत समय बात आज ओबीओ पर लोटा हूँ। आपकी रचना पड़ कर बड़ा अच्छा लगा। बहुत बहुत बधाई।

आ. भाई तपन जी, सादर अभिवादन। गीत और ओबीओ पर आपकी उपस्थिति से हर्षित हूँ। रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,

भाव पक्ष से समृद्ध इस रचना के प्रति हार्दिक बधाई. आजके सम्बन्धों में जैसा हल्कापन व्याप गया है, उस पर आपकी कलम बखूब चली है. 

वैसे कुछ बिन्दुओं पर चर्चा आवश्यक है. 

’कोई’ के साथ ’भी’ का प्रयोग उचित नहीं है. 

कौन सोनी भला आज सोनी रही
कौन माही ने है प्रीत मन से गही।।
सुख से दुख से उसे वास्ता कुछ नहीं
तन को पाने को  केवल  बना मीत है ....  वाह वाह वाह ! 

मन के आँगन में भनी भीत है... ...         क्या बात है ! 

इस रचना के लिए पुनः हार्दिक बधाई. 

शुभ-शुभ

जब हाथ कंधे पर पड़ा तो

एक पल के लिए झेंप गई,

उसने अपना सिर घुमाया और अपनी आँखें पोंछ लीं

जैसे ही वह बालों में फंसे तिनके को हटाने के लिए आगे बढ़ा,

वो उसके कंधे पर गिर

फूट-फूट कर रो पड़ी

मानो भीतर का सारा बवंडर निकल आया हो

देखते ही देखते आँसू झील में बदल गए

उसने बंध ढीले कर दिए , पीठ को सहलाया,

हौले हौले सिर को थपथपाया

जब वह थोड़ा संभल कर बैठ गई, तो उसने पूछा..

ये अचानक से क्या हो गया?
मेरी जान !

उसकी नजरें झुकी रही
बोली

बवंडर में फँसना..उसमें
फंसे सूखे पत्तो सा ऊपर उठते जाना
फिर से
भंवर के बाहर फेंक देना..

गिर जाना.. दिशाहीन सा ..

क्या यही होगा मेरा अतीत, भविष्य और वर्तमान?

तुम इतनी दुखी क्यूँ हो?
मेरी जानेमन!

क्या मैं तुम्हारे साथ नहीं हूँ?


मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीया नयना जी,

आपकी प्रस्तुत रचना के माध्यम से आत्मीय भावनाएँ शाब्दिक हुई हैं. हताशा के गहन पलों में कन्धों को मिला आत्मीय स्पर्श पुनः ऊर्जस्वी कर देता है. 

प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद और बधाई. 

शुभ-शुभ 

        कुण्डलिया छंद 

दिल का रिश्ता हे नहीं, सियासत का गुलाम  !

बिछें खूब जग गोटियाँ, शतरंज  सरे  आम  !!

शतरंज सरे आम,  धर्म कब आयोजक का  !

कवि हुलास चाहिए, शान्त वातावरण हल्का !!

सुख का घर  साम्राज्य, उल्लास जगती सस्ता !

रचे बहुजन हिताय,  विश्व हो दिल का रिश्ता !!

यह जगती है ईश की, अनुपम रचना जान  !

रचयिता समाया सृजन, दिव्य दृष्टि हो ज्ञान !!

दिव्य दृष्टि हो ज्ञान,  ईश     झाँकता     सृष्टि   से  !

स्वीकृति उसकी हुआ, सृजन काव्य कवि दृष्टि से !!

दिल से रिश्ता रचा , कविता भजन लगती है !

कृपा मात्र ब्रह्म की, हो    सृजन    जगती है  !!

जिम्मेदारी छोड़ सुन, किया  कुठाराघात  !

कुदृष्टि कविता क्या पड़ी, खेत तुषारापात !!

खेत तुषारापात,  सूखते   सारे      पौधे  !

संकल्प भूल गये, पड़े सब आसन औंधे !!

कह 'चेतन' कविराय,  लगी आग फुलवारी !

 कि पहरेदार गये,  भूल सब     जिम्मेदारी !!

मौलिक व अप्रकाशित 

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी कुंडलिया हुई हैं। हार्दिक बधाई।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, कुण्डलिया छंद में प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद. 

वैसे इस छंद के मूलभूत विधान पर तनिक अध्ययन आवश्यक है. 

हार्दिक बधाई 

मुक्तक

1.'रिश्ता छोटा बड़ा नहीं देखता,
रिश्ता अमीर गरीब नहीं देखता,
रिश्ता जो लोगों के मध्य तारतम्य जोड़े,
रिश्ता दिल के भावों को देखता।'


2.'क्यों नहीं होता सबसे दिल का रिश्ता,
सबसे अनमोल जो है दिल का रिश्ता,
इसकी कद्र करना जो जानता,
उससे ही जुड़ता दिल का रिश्ता।'

मौलिक व‌‌‌ अप्रकाशित

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
Monday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service